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राणायामाप महाना
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अत्यन्त भयंकर तथा द्वेषोत्पादक शब्द होते हैं उन्हें सुन कर जो नहीं डरता या विकारको प्राप्त नहीं होता वही सच्चा भिक्षु है।
(१५) लोक में प्रचलित भिन्न भिन्न प्रकार के वादों (तन्त्रादि शास्त्रों) को समझ कर जो अपने प्रात्मधर्म में स्थिर रहता हुआ संयम में दत्तचित्त रहता है,सब परीषहों को जीत कर समस्त जीवों पर आत्मभाव रखता हुआ कषायों पर विजय प्राप्त करता है तथा किसी जीव को पीड़ा नहीं पहुंचाता है वही सच्चा भिक्षु है।
(१६)जोशिल्प विद्याद्वारा अपना जीवन निर्वाह न करता हो, जितेन्द्रिय,आन्तरिक तथा बाह्य बन्धनों से मुक्त,अल्प कषाय वाला थोड़ा (परिमित) भोजन करने वाला, सांसारिक बन्धनों को छोड़ कर राग द्वेष रहित विचरने वाला ही सच्चा भिक्षु है।
(उत्तराध्ययन १५ वा स भिक्खु अध्ययन) ८६३-बहुश्रुत साधु की सोलह उपमाएं
निरभिमानी, निर्लोभी संयम मार्ग में सावधान, विनयवान्, बहुत शास्त्रों के ज्ञाता साधु को बहुश्रुत कहते हैं। बहुश्रुत साधुका सोलह उपमाएं दी गई हैं
(१) जिस तरह शंख में रखा हुआ दूध दो तरह से शोभित होता है अर्थात् दूध भी सफेद होता है और शंख भी सफेद होता है, अतः शंख में रखा हुश्रा दूध देखने में सौम्य लगता है और वह उसमें कभी नहीं बिगड़ता। उसी तरह ज्ञानी साधु धर्मकीर्ति तथा शास्त्र इन दोनों द्वाराशोभित होता है अर्थात् ज्ञान स्वयं सुन्दर है और धारण करने वाले ज्ञानी का आचरण जब शास्त्रानुकूल हो तव उसकी आत्मा की उन्नति होती है और धर्म की भी कीर्ति बढ़ती है इस तरह ज्ञान और ज्ञानीदोनोंशोभित होते हैं।
(२)जिस प्रकार कंबोज देश के घोड़ों में आकीर्ण जाति का घोड़ा सव प्रकार की गति (चाल) में प्रवीण, सुलक्षण और अति