________________
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
xnnn v
.mmmmmm
. rmwara
योगियों के लिए योग्य नहीं हैं इस लिए जो इनका त्याग करता है वही सच्चा भिक्षु है।
(8)जो साधु क्षत्रिय,वैश्य और ब्राह्मण भादि की भिन्न भिन्न प्रकार की वीरता तथा शिल्प कला आदि की पूजा या झूठीप्रशंसा करके संयमी जीवन को कलुपित नहीं करता वही सच्चा भिक्षु है।
(१०) गृहस्थाश्रम में रहते हुए तथा मुनि होने के बाद जिन जिन गृहस्थों से परिचय हुआ हो उनमें से किसी के भी साथ ऐहिक सुख के लिए जो सम्बन्ध नहीं जोड़ता वही सच्चा भिक्षु है। मुनि का सब के साथ केवल पारमार्थिक भाव से ही सम्बन्ध होना चाहिए।
(११) साधु के लिए आवश्यक शय्या (घास फूस आदि) पाट,आहार,पानी अथवा अन्य कोई खाद्य और खाद्यपदार्थ गृहस्थ के घर में मौजूद हों किन्तु मुनि द्वारा उन पदार्थों की याचना करने पर यदि वह न दे तो उसको जरा भी द्वेष युक्त वचन न कहे और न मन में बुरा ही माने वही सच्चा भिक्षु है क्योंकि मुनि को मान और अपमान दोनों में समान भाव रखना चाहिये।
(१२) जो अनेक प्रकार के आहार, पानी, खादिम, स्वादिम आदि पदार्थ गृहस्थों से प्राप्त हुए हैं उनको पहले अपने साथी साधुओं में बाँट कर पीछे स्वयं आहार आदि करता है तथा अपने मन, वचन, काया को जो वश में रखता है वही सच्चा भिक्षु है।
(१३) गृहस्थ के घर से ओसामण, पतली दाल, जौ का दलिया, ठंडा भोजन, जौ या कांजी का पानी आदि आहार माप्त कर जो उसकी निन्दा नहीं करता तथा सामान्य स्थिति के घरों में भी जाफर जो भिक्षात्ति करता है वही साधु है क्योंकि साधु को अपने संयमी जीवन के निर्वाह के लिए ही आहारादि ग्रहण करने चाहिये, जिहा की लोलुपता शांत करने के लिए नहीं।