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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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(४) भाडी कम्मे (भाटक कर्म)-भाड़ा कमाने के लिए गाड़ी आदि से दूसरे के समान को ढोना।आवश्यकनियुक्ति में पशु को भाड़े पर देना भी भाडीकर्म बतलाया है।
(५)फोडी कम्मे (स्फोटनकर्म)-कुदाली,इल वगैरह से भूमि को फोड़ना और उसमें से निकले हुए पत्थर; मिट्टी, धातु आदि पदार्थों को बेच कर आजीविका चलाना। .
(६)दंत वाणिज्जे (दन्तवाणिज्य)-हाथी दाँत, शंख, केश, नख,चर्मादिकाधंधा करना अर्थात् हाथी दॉत आदि निकालने वालों से इन चीजों को खरीदना, पेशगी रकम या आर्डर देकर उन्हें निकलवाना और उन्हें बेच कर आजीविका चलाना दंतवाणिज्य है।
(आवश्यकनियुक्ति) (७) लक्खवाणिज्जे (लाहावाणिज्य)-लाख का व्यापार करना। जिन वस्तुओं को तैयार करने में त्रस जीवों की हिंसा हो ऐसी खान, वृक्ष, या त्रस जीवों से पैदा होने वाली सभी वस्तुएं यहॉलाता शब्द से ले ली जाती हैं। उनमें से किसी का व्यापार करना लाक्षावाणिज्य है। नोट-रेशम बनाने का धन्धा भी लाक्षावाणिज्य में आजाता है।
(८) रसवाणिज्जे (रसवाणिज्य)- मदिरा वगैरह काव्यापार अर्थात् कलाल का धन्धा करना।
(8) विसवाणिज्जे (विषवाणिज्य)-अफीम,संखिया आदि विषैली वस्तुओं का व्यापार करना । विष शब्द से वे सभी शस्त्र भी ले लिए जाते हैं जिनका प्रयोजन जीवों की हिंसा करना है।
(१०)केसवाणिज्जे (केशवाणिज्य)-केशवालेप्राणी अर्थाद दास, दासी, गाय, हाथी,घोड़ा आदि को बेचने काधन्धा करना।
(११) जंतपीलणयाकम्मे (यन्त्रपीड़नकर्म)-तिल और ईद भादि को पानी या कोल्हू में पील कर तेल या रस निकालने का