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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वाला होता है और गुणों के सागर गुरुजनों के वचनों को विनय पूर्वक सुन कर तदनुसार भाचरण करने वाला होता है वह मुनि संसार में पूजनीय हो जाता है। (१५)जैनागम के तत्त्वों को पूर्णरूप से जानने वाला, अतिथि साधुओं की दत्तचित्त से सेवा-भक्ति करने वाला साधु अपने गुरु महाराज की निरन्तर सेवा भक्ति करके पूर्वकृत कर्मों को तय कर देता है और अन्त में दिव्य तेजोमयी, अनुपम सिद्धगति को प्राप्त कर लेता है। (दशवैकालिक अध्ययन ६ उद्देशा ३) ८५४- अनाथता की पन्द्रह गाथाएँ उत्तराध्ययन सूत्र के बीसवें अध्ययन का नाम महानिर्ग्रन्थीय है। इसमें अनाथी मुनि का वर्णन है। ___ एक समय मगध देश का खामी राजा श्रेणिक सैर करने के लिए जंगल की ओर निकला। सैर करता हुआ राजा मंडितकुति नामक उद्यान में श्रा पहुँचा। वहाँ एक वृक्ष के नीचे पद्मासनलगाए हुए एकध्यानस्थ मुनि को देखा। मुनि की प्रसन्न मुखमुद्रा, कान्तिमय देदीप्यमान विशाल भाल और सुन्दर रूप को देख कर राजा श्रेणिक विस्मित एवं आश्चर्यचकित होगया।वह विचार करने लगा कि अहा ! कैसी इनकी कान्ति है ? कैसा इनका अनुपम रूप है ? अहा ! इस योगीश्वर की कैसी अपूर्व सौम्यता, क्षमा, निर्लोभता तथा भोगों से निवृत्ति है! उस योगीश्वर के दोनों चरणों को नमस्कार करके प्रदक्षिणा देकर न अति दूर और न अति पास इस तरह खड़ा होकर, दोनों हाथ जोड़ कर राजाश्रेणिक विनय पूर्वक इस प्रकार पूछने लगा*हे आर्य ! इस तरुणावस्था में भोग विलास के समय आपने दीक्षा क्यों ली है?आपको ऐसी क्या प्रेरणा मिली जिससे आपने
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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