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श्री मंठिया जैन ग्रन्थमाला
~ron rvin we,rrawnrmmmmmmmmmmmm द्वारा न पूछ कर मन से ही पूछता है उस समयं केवली भगवान् भी उस प्रश्न का उत्तर मन से ही देते हैं। प्रश्न करने वाला मनः पर्यय ज्ञानी भगवान् द्वारा मन में सोचे हुए उत्तर को प्रत्यक्ष जान लेता है और अवधिज्ञानी उस रूप में परिणत हुए मनोवर्गणा के परमाणुओं को देख कर मालूम कर लेता है।
उपदेश देने के लिए केवली भगवान् वचन योग का उपयोग करते हैं। हलन चलन आदि क्रियाओं में काययोग का उपयोग करते हैं।
(१४)अयोगी केवली गणस्थान-जो केवलीभगवान् योगों से रहित हैं वे अयोगी केवली कहे जाते हैं। उनके स्वरूप विशेष को अयोगी केवली गणस्थान कहते हैं। __तीनों प्रकार के योग का निरोध करने से अयोगी अवस्था प्राप्त होती है। केवली भगवान् सयोगी अवस्था में जघन्य अन्तर्मुहूर्ततक
और उत्कृष्ट कुछ कम एक करोड़ पूर्व तक रहते हैं। इसके बाद जिस केवली के आयु कर्म की स्थिति और प्रदेश कम रह जाते हैं तथा वेदनीय,नाम और गोत्र कर्म की स्थिति और प्रदेश प्रायु कर्म की अपेक्षा अधिक बच जाते हैं वे समुद्घात करते हैं। समुद्घात के द्वारा वेदनीय, नाम और गोत्र की स्थिति श्रायु के बरावर कर लेते हैं। जिन केवलियों के वेदनीय आदि उक्त तीन कर्मस्थिति तथा परमाणुओं में आयुकर्म के बराबर होते हैं उन्हें समुद्घात करने की आवश्यकता नहीं है । इस लिए वे समुद्घात नहीं करते।
सभी केवलज्ञानी सयोगी अवस्था के अन्त में एक ऐसे ध्यान के लिए योगों का निरोध करते हैं जो परम निर्जरा का कारण, लेश्या से रहित तथा अत्यन्त स्थिरता रूप होता है। __ योगों के निरोध का क्रम इस प्रकार है- पहले वादर काययोग से बादरमनोयोग तथा वादर वचनयोग को रोकते हैं। इसके बाद सूक्ष्म काययोग से वादर काययोग को रोकते हैं और फिर उसी