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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला रूप हैं। जैसे घट की उत्पत्ति के लिए मिट्टी, दण्ड, चक्र, चीवर आदि की मावश्यकता पड़ती है। __ शश-देह प्रादि के माता पिता आदि कारण प्रसिद्ध ही हैं, फिर अदृष्ट कारण मानने की क्या आवश्यकता है ?
समाधान-माता पिता आदि कारणों के समान होने पर भी दो व्यक्खियों में भेद नजर आता है। एक सुरूप होता है दूसरा कुरूप एक बुद्धिमान दूसरा मूर्ख । इन सब बातों का कारण माता पिता के सिवाय कोई दूसरा मानना पड़ता है।
सुख और दुख का उन्हीं सरीखा कारण है, क्योंकि ये कार्य है।जो कार्य होता है, उसके अनुरूप कारण भी होता है, जैसेघट के परमाणु। ___ शङ्का-सुख और दुःख के अनुरूप कारण होने से पुण्य और पाप की सिद्धि की जाती है । सुख और दुख आत्मा के भाव होने से अमूर्त है, इसलिए उनका कारण भी अमूर्त होना चाहिए। अमूर्त का कारण मूर्त कर्मों को नहीं माना जा सकता।
समाधान-कार्य और कारण सर्वथा समान नहीं होते । सर्वथा समान मानने पर कार्य और कारण का मेद ही मिट जाएगा। इसलिए दोनों में कुछ समानता होती है और कुछ विषमता ।
शा-संसार की सभी वस्तुएं कुछ अंशों में समान तथा कुछ अंशों में भिन्न है । कारण और कार्य भी कुछ अंशों में भिन्न हैं। ऐसी दशा में कारण को कार्य के अनुरूप कहने का स्या तात्पर्य है ?
समाधान-कारण ही कार्यरूप में परिणत होता है इसलिए वह उसके अनुरूप कहा जाता है । जो जिस रूप में परिणत नहीं होता वह उसके अनुरूप नहीं कहा जाता । जीव और पुण्य का संयोग सुख का कारण है और सुख उसी की पर्याय है। जीव और पाप का संयोग दुःख का कारण है और दुःख भी उसी की पर्याय है।