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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
मेरे दोनों बड़े भाई उनके पास दीक्षित हो गए । उसका मस्तक भक्ति से झुक गया। वन्दना करने के लिए वह भगवान के पास पहुँचा। भगवान को वन्दना करके नम्रता पूर्वक बैठ गया । मगवान ने प्रेमपूर्वक कहा
सौम्य ! वायुभूते । संकोचवश तुम अपने हृदय की बात नहीं कह रहे हो। तुम्हारे मन में संशय है कि जीव और शरीर एक ही , हैं या भिन्न भिन्न । वेद में दोनों प्रकार की श्रुतियाँ मिलती हैं, कुछ ऐसी हैं जिन से जीव का शरीर से मिन अस्तित्व सिद्ध होता है और कुछ ऐसी हैं जिन से जीव और शरीर एक ही सिद्ध होते हैं।
शङ्का-भूतवादियों का कहना है कि पृथ्वी, जल, तेज और वायु इन चारों भूतों के मिलने से आत्मा उत्पन्न होता है । यद्यपि पृथ्वी आदि में अलग अलग चेतना शक्ति नहीं है, फिर भी चारों के मिलने से नवीन शक्ति उत्पन्न हो सकती है। जैसे किसी एक वस्तु में मादकता न होने पर भी कुछ के मिलने पर नई मादक शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
समाधान-केवल भूत समुदाय से चेतना उत्पन्न नहीं हो सकती क्योंकि अलग अलग भूतों में वह शक्ति विल्कुल नहीं है । जैसे चालू से तेल नहीं निकल सकता । जिन वस्तुओं के समूह में जो शक्ति रहती है वह उनके एक देश में भी आंशिक रूप से रहती ही है। जैसे एक तिल में तेल । पृथ्वी आदि भूतों में पृथक रूप से चेतना शक्ति नहीं रहती इसलिए वह समुदाय में भी नहीं पा सकती। जिन वस्तुओं से मद्य पैदा होता है उनमें अलग अलग भी मदशक्ति रहती है, इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि प्रत्येक वस्तु में मद न होने पर भी उनके समूह में उत्पन्न हो जाता है। नीचे लिखे अनुमानों से भी भूतों से अलग श्रात्मा सिद्ध होता है-जीव का चेतना गुण भूत और इन्द्रियों से भिन्न वस्तु का धर्म