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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
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है क्योंकि भूत और इन्द्रियों द्वारा प्राप्त किए हुए पदार्थ का स्मरण होता है। जैसे पाँच खिड़कियों द्वारा जाने हुए पदार्थ का स्मरण करने वाले देवदत्त आदि की आत्मा । अनेक कारणों से जाने गए पदार्थ को जो एक स्मरण करता है वह उनसे भिन्न होता है । घटादि पदार्थ चतु, स्पर्श आदि अनेक इन्द्रियों से जाने जा सकते हैं किन्तु उनका स्मरण करने वाला एक ही है, इसलिए वह चक्षु आदि से भिन्न है। इस प्रकार स्मरण करने वाला आत्मा ही है। शङ्का - इन्द्रियाँ ही स्वयं जानती हैं और वे ही स्मरण करती हैं। अलग आत्मा मानने से क्या लाभ ?
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समाधान - न इन्द्रियाँ स्वयं जानती हैं, न स्मरण करती हैं किन्तु श्रात्मा इन्द्रियों द्वारा जानता है और वही स्मरण करता है । अगर इन्द्रियाँ ही स्मरण करती हैं तो किसी इन्द्रिय के नष्ट हो जाने पर उसके द्वारा जाने हुए पदार्थ का स्मरण नहीं होना चाहिए।
घटपट आदि को जानना इन्द्रियों से भिन्न किसी दूसरी वस्तु का कार्य हैं, क्योंकि इन्द्रियों के नष्ट हो जाने पर उनका व्यापार न होने पर भी उनके द्वारा जाने हुए पदार्थ का स्मरण होता है, ' अथवा इन्द्रियों का व्यापार होने पर भी वस्तु की उपलब्धि न होने से कहा जा सकता है कि जानने वाला कोई और है । जब मन किसी दूसरी ओर लगा होता है तो किसी वस्तु की ओर आँखें खुली रहने पर भी वह दिखाई नहीं देती । इससे जाना जाता है कि जानने वाला इन्द्रियों से भिन्न कोई और है। क्योंकि इन्द्रियाँ तो कारण हैं ।
आत्मा इन्द्रियों से भिन्न है क्योंकि एक इन्द्रिय से वस्तु को जान कर दूसरी इन्द्रिय से विकार प्राप्त करता है। जैसे एक खिड़की से किसी वस्तु को देख कर दूसरी से उसे ग्रहण करने की चेष्टा करने वाला व्यक्ति खिड़कियों से भिन्न है । आँखों से निम्बू