________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा माग __ श्रावक के बारह व्रतों की . संक्षिप्त टीप सम्यक्त्व का स्वरूप सम्यक्त्व धर्म रूपी प्रसाद का द्वार है, इसलिए सर्व प्रथम सम्यक्त्व का स्वरूप जानना आवश्यक है: तत्त्व (वस्तु) का जैसा स्वरूप है, उसको उसी प्रकार जानकर श्रद्धा करना सम्यक्त्व है। मुख्य तत्त्व तीन है-देव, गुरु 'और धर्म। देव तत्व-कर्मशत्रु को हनन करने वाले,अठारह दोषरहित, सर्वज्ञ,वीतराग,हितोपदेशक अरिहन्तातीर्थकर भगवान् और आढ़ कर्मों का चय करके मोक्ष को प्राप्त हुए सिद्ध भगवान् देव हैं। गुरु तत्व-पंच महावत (सम्पूर्ण अहिमा, सत्य, अदत्त, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) के धारक, छ. काय जीवों के रक्षक, सवाईम गुणों से भूपित, वीतराग को आज्ञानुमार चलने वाले निर्ग्रन्थ मुनिराज 'गुरु हैं। 'धर्म तत्व-सर्वज्ञमापित,दयामय, विनय मूलक, जीव तल