________________ 464 श्री सेठिया जैन प्रन्थमाना और अजीव तत्त्व तथा आत्मा और कर्म का भेदज्ञान कराने वाला, मोक्ष तत्व का प्ररूपक शास्त्र धर्म तत्व है। प्रतिज्ञा जिण पएणत्तं तवं, इत्र सम्मत्तं मए गहियं // भावार्थ-जीवन पर्यन्त अरिहंत भगवान् मेरे देव हैं, पंच धर्म है। इस प्रकार मैंने सम्यक्त्व धारण किया है। ऊपर लिखे अनुसार मैं देव, गुरु और धर्म की श्रद्धा प्रतीति 1 मोच का साधक नहीं मानूंगा। , आगार कदाचित् राजा के आग्रह से, जाति के कारण, बलात्कार से, देवता के प्रकोप से, माता पिता आदि कुटुम्ब की तथा गुरु की आज्ञा पालन निमित्त, आजीविका की कठिनता पड़ने पर निर्वाह निमित्त कुदेव, कुगुरु, कुधर्म को वन्दन नमस्कार. करना पड़े तो आगार है। इनके सिवाय.किसी विशेष अवसर परदुःखी जीवों की रक्षा निमित्त, सघ का कष्ट दूर करने निमित, धर्म की प्रभावना के लिए और लोक व्यवहार से कुदेव भादि का आदर सम्मान करना पड़े तो इनका भी मेरे आगार है / . नियम देव आराधना-सुख शान्ति में नित्यप्रति णमोकार मन्त्र की ,