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________________ भी जैन सिद्धान्त मोल संग्रह, चौथा भाग 41 इस पर विष्णुकुमार को क्रोध श्रागया। उन्होंने कहा- अच्छा। केवल तीन पैर स्थान दे दो। नमुचि ने उत्तर दिया- अगर इतने स्थान से बाहर किसी को देखा तो सिर काट डालूंगा। विष्णुकुमार ने वैक्रियलब्धि के द्वारा अपने शरीर को बढ़ाना शुरू किया। उनके विराट् रूप को देख कर सभी डर गए / नमुचि उनके पैरों में गिर कर क्षमा मांगने लगा। संकट दूर होने पर शान्त चित्त होकर विष्णुकुमार फिर तपस्या करने लगे। कुछ दिनों बाद पाती कर्मों का नाश हो जाने से वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होगए / महापा ने भी चक्रवर्ती पद को छोड़ कर दीक्षा ग्रहण कर ली। पाठ कर्मों का क्षय करके वे मोक्ष पधार गए / विष्णुकुमार भी श्रायुष्य पूरी "होने पर सिद्ध होगए। जिस प्रकार विष्णुकुमार ने धर्म पर आए हुए संकट को दर किया था उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को शक्त्यनुसार करना चाहिए। (नवपदप्रकरण बृहद्वृत्ति 7 वा सम्परत्व दार) अन्तिम मंगल वीतरागपवद्वन्द्वं, भवद्वन्द्वविनाशकम् / / वन्दे वृन्दारकेन्द्राणां, वृन्दैः सततवन्दितम् // 1 // प्रोन्मथ्य ये श्रुताम्भोधि, सारमाप्त्वा तदीयकम् / ददन्ते भव्यवृन्दाय, लोककल्याणकांक्षया // 2 // येषां कृपां विना लोके, सफलश्रेयसांनिधे। वर्द्धमानविभोः वाचो, रहस्यं न प्रकाशते // 3 // तपस्त्यागतितिक्षाधीन, तान् महाव्रतमण्डितान् / त्यतमोहान् मुनीनौमि, मोक्षमार्गस्य लब्धये // 4 // भाति श्रीजैनसिद्धान्त घोलसंग्रहसज्ञितः। ग्रन्थः प्रमाणसंधा, धर्ममर्मप्रकाशकः॥ 5 // /
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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