________________ 456 श्री सेठिया जैन प्रन्यमाना उचित समय पर महापद्म नाम का चक्रवर्ती पुत्र उत्पन हुआ। धीरे धीरे वह भी युवावस्था को प्राप्त हुआ। चक्रवर्ती के लक्षण उसी समय उज्जैनी नगरी में श्रीधर्म नामक राजा राज्य करता था / उसके नमुचि नाम का मन्त्री था / एक बार मुनिसुव्रत स्वामी के शिष्य सुत्रताचार्य अनेक मुनियों के साथ विचरते हुए वहाँ पधारे। नगरी के लोग सज धज कर दर्शनार्थ जाने लगे। राजा और मन्त्री अपने महल पर चढ़ कर उन्हें देखने लगे / राजा ने पूछा-क्या लोग अकाल यात्रा के लिए जा रहे हैं 1 नमुचि ने उत्तर दिया- महाराज ! आज सुबह मैंने सुना था कि उद्यान में कुछ श्रपण पाए हैं / राजा ने कहा चलो, हम भी चलें। मन्त्री ने उत्तर दिया-वहाँ श्राप किस लिए जाना चाहते हैं ? धर्म सुनने की इच्छा से तो वहाँ जाना ठीक नहीं है, क्योंकि वेदविहित सर्व सम्मत धर्म का उपदेश तो हम ही देते हैं। राजा ने कहा-यह ठीक है कि आप धर्म का उपदेश देते हैं किन्तु महात्माओं के दर्शन करने चाहिए और यह जानना चाहिए कि वे कैसे धर्म का उपदेश देते हैं ? मन्त्री ने जाना मंजूर करके कहा-आप वहाँ मध्यस्थ होकर पैठियेगा। मैं उन्हें शास्त्रार्थ में जीत कर निरुत्तर कर दूंगा। राजा और मन्त्री सामन्तों के साथ उनके पास गए। वहाँ धर्मदेशना देते हुए प्राचार्य सुव्रत को देखा / प्रणाम करके वे उचित स्थान पर बैठ गए / अकस्मात् नमुचि मन्त्री ने प्राचार्य को पराजित करने के उद्देश्य से अवहेलना भरे शब्दों में प्रश्न पूछने शुरू किए। आचार्य के एक शिष्य ने उन सब का उत्तर देकर मन्त्री को चुप कर दिया / समा के अन्दर इस प्रकार निरुचर होने पर नमुचि को बहुत बुरा लगा। साधुओं पर द्वेष करता हुआ वह रात को तलवार