________________ - श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, चौथा भाग 45 शकाएं की। वज्रमुनि ने अच्छी तरह खुलासा कर दिया। साधु श्रु तस्कन्ध पूरा हो जाय / साधु वषमुनि को बहुत मानने लगे। धीरे धीरे वज्रमुनि दस पूर्वधारी हो गए। प्राचार्य का स्वर्गवास होने पर वे ही प्राचार्य बने / अनेक साधु साध्वियों ने उनके पास , दीक्षा ली। सुन्दर रूप, शास्त्रों का ज्ञान तथा विविध लब्धियों के कारण उनका प्रभाव दूर दूर तक फैल गया / देवता उनकी सेवा में उपस्थित रहने लगे। एक बार महा दुर्मिक्ष पड़ गया / सारा संघ एकत्रित होकर ववस्वामी के पास गया। अपनी लब्धि के बल से वे सारे संघको दुर्भिक्ष रहित स्थान में ले गए। वहाँ सभी प्रानन्द पूर्वक रहने लगे। समान धर्म वाले के कष्ट को दूर करना साधर्मिक वत्सलता है। यह भी सम्यक्त्व का लक्षण है। (13) प्रभावना के लिए विष्णुकुमार का दृष्टान्त तीर्थ या धर्म का पराभव उपस्थित होने पर उसकी उमति के * लिए चेष्टा करना प्रभावना है। इसके लिए विष्णुकुमार का दृष्टान्त___ कुरुदेश में हस्तिनापुर नाम का नगर था। वहाँपनोचर राजा रात के अन्तिम माग में उसने अपनी गोद में आते हुए सिंह का स्वम देखा / प्रतापी पुत्र की उत्पत्ति रूप स्वप्न के फल को जान कर उसे बहुत हप हुवा। समय पूरा होने पर उसने देवकुमार के सदृश पुत्र को जन्म दिया। बड़े धूम धाम से पुत्र जन्मोत्सव मनाया गया। शुभ मुहूर्त में पालक कानाम विष्णुकुमार रक्खा गया। धीरे धीरे वृद्धि पाता हुभा चह युवावस्था को प्राप्त हो गया। महारानी ज्वाला ने रात्रि के अन्तिम पहर में चौदह स्वप्न देखे।