________________ 484 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला को निमन्त्रित किया / उन्होंने जाकर उपयोग लगाया-द्रव्य से पका हुआ कूष्माण्ड है, क्षेत्र से उज्जैनी है, काल से वर्षा समय है, भाव से देने वाले पृथ्वी को नहीं छू रहे हैं और निनिमेष हैं अर्थात् उनकी पलकें स्थिर हैं / यह देख कर वजूमुनि ने समझ लिया कि वे देव हैं / इस लिए आहार को ग्रहण नहीं किया / देव इस बात से सन्तुष्ट हुए और अपने स्वरूप को प्रकट करके उन्होंने वजूमुनि को वैक्रिय शक्ति दे दी। कुछ दिनों बाद ज्येष्ठ मास में जब वजूमुनि अवन्ती नगरी में थे उस समय देवों ने फिर उनकी परीक्षा की / जब वे शौच निवृत्ति के लिए चारह गए तब घेवर और शाक आदि बना कर उन्हें श्रामन्त्रित किया। द्रव्यादि का उपयोग लगा कर वहाँ पर भी वजमुनि ने सचाई जान ली और आहार को ग्रहण नही किया / उस समय देवों ने उन्हें आकाशगामिनी विद्या दे दी। दूसरे शिष्यों को पढ़ते हुए सुन कर वजमुनि को ग्यारह अंगों का ज्ञान स्थिर हो गया। इसी प्रकार सुन कर ही उन्होंने पूर्वो का मी बहुतसा ज्ञान प्राप्त कर लिया। एक बार आचार्य शौच निवृत्ति के लिए गए हुए थे और दूसरे स्थविर साधु गोचरी के लिए उपाश्रय से बाहर थे। उस समय वजूस्वामी कुछ छोटे छोटे साधुओं की मण्डली में बैठ कर वाचना देने लगे। इतने में आचार्य श्रा गए / वजमुनि को वाचनी देते हुए देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ / कुछ दिनों बाद आचार्य ने दूसरी जगह विहार करने का निश्चय किया। साधुओं को याचना देने का कार्य बजमुनि को दे दिया। सभी साधु भक्ति पूर्वक वजमुनि से वाचना लेने लगे। वजमुनि इस प्रकार समझाने लगे जिससे मोटी बुद्धि वाले भी समझ जायें। पढ़े हुए अ तज्ञान में से भी साधुओं ने बहुत सी