________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह, चौथा भाग पास चला जाएगा, यह उसी का होगा। संघ के साथ गुरु एक तरफ थे तथा सुनन्दा और सभी नागरिक दूसरी तरफ। वे राजा के दोनों तरफ चैठ गए और वालक सामने वैठ गया। स्त्री पक्ष वालों द्वारा दया की प्रार्थना करने पर राजा ने पहले सुनन्दा से वुलाने के लिये कहा / वह कई प्रकार के खिलौने तथा खाद्य वस्तुएं लेकर आई थी। उन्हें दिखाती हुई सुनन्दा प्यार से बुलाने लगी। पालक माता को देख कर भी दूर बैठा रहा। अपने स्थान से नहीं हिला / वह मन में सोचने लगा-पालने में पड़े हुए भी मैंने सुनने मात्र से ग्यारह अंग पढ़ लिए।क्या अब माता के मोह में पड़कर संघ को छोड़ दें? अगर में व्रत में रहातो माता भीत्रत अङ्गीकार कर लेगी, जिससे दोनों का कल्याण होगा। राजा की आज्ञा से पिता ने उस से कहा-हे वजू ! यदि तुम ने निश्चित कर लिया है तो धर्माचरण के चिन्हमृत तथा कर्मरज को पूजने वाले इस रजोहरण को स्वीकार करो। यह सुनते ही के सामने उसी समय दीक्षा दे दी। दीक्षा ले ली। अब मुझे किसी से क्या मतलब है ? यह सोचकर उसने भी दीक्षा ले ली। ___ कुछ साधुओं के साथ वाशक को वहीं छोड़ कर आचार्य दूसरी जगह विहार कर गए। धमुनि आठ वर्ष के होने पर प्राचार्य के साथ दिहार करने लगे। एक-वार गुरु अवन्ती की ओर जा रहे थे रास्ते में वर्षा होने लगी। उसी समय उसके पूर्वभव के मित्र जम्भक देव जा रहे थे। वजूमुनि को देख कर परीक्षा करने के लिए ठहर गए। उन्होंने कूष्माण्ड (कोहले) को पकाया और वर्षा बंध हो जाने पर वजमुनि