________________ ४पर - श्री सेठिया जैम प्रन्थमाला इसी प्रकार छः मास बीत गए। एक बार वहाँ प्राचार्य पधारे / आर्यशमी और धनगिरि ने आचार्य को पूछा-अगर आप आज्ञा दें तो हम अपने गृहस्थावास के सम्बन्धियों के घर भिक्षार्थ होने वाला है। सचित या अचित जो कुछ मिले उसे लेते आना। गुरू की आज्ञा लेकर वे सम्बन्धियों के घरों में गए और घूमने लगे इतने में स्त्रियों ने आकर सुनन्दा से कहा-इस वालक को तुम उन्हें दे दो। फिर वे अवश्य स्नेह करने लगेंगे। सुनन्दाने धन कीजिए ।धनगिरि ने उत्तर दिया-तुम पश्चाताप मत करो / यह ने यह जान कर रोना बन्द कर दिया।। धनगिरि उसे लेकर आचार्य के पास चले आए। आचार्य ने पात्र को भरा जान कर हाथ फैलाया / छूते ही आचार्य जान गए कि यह कोई बालक है / इसके बाद देवकुमार के सदृश बालक को देखा और कहा-इस को भली प्रकार पालना चाहिए। यह प्रवचन का आहार अर्थात् पोषक होगा / उसी दिन से उसका नाम वजू रख दिया। आचार्य ने उसे साध्वियों को सौंप दिया। साच्चियों ने शय्यातर को दे दिया। वालक शय्यातर के अपने बच्चों के साथ बढ़ने लगा। साधु वहाँ से विहार कर गए। सुनन्दा ने बालक को वापिस मांगा किन्तु शय्यातर ने उसे निक्षप अर्थात दूसरे की . धरोहर बता कर नहीं दिया। सुनन्दा रोन आकर उसे दूध पिला जाती थी। इसी प्रकार वह तीन वर्ष का हो गया। कुछ दिनों बाद साधु फिर वहीं पा गए / सुनन्दा ने उनसे पुत्र को मांगा। साधुओं ने, नहीं दिया। सुनन्दा ने राजद्वार में जा कर पुकार की / राजा ने निर्णय दिया-आगे बैठा हुआ यह चालक बुलाने पर जिस के