________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, चौथा भाग 41 लिए क्षमा मांगी और स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर दिया। जिस प्रकार देव ने प्राचार्य को सम्यक्त्व में स्थिर किया, उसी प्रकार सम्यक्त्व से गिरते हुए को स्थिर करना चाहिए। (उत्तराधयनसूत्र, कथा वाला, दूसरा परिषहाभ्ययन) (12) वात्सल्य के लिए वजस्वामी का दृष्टान्त भ्रातृभाव से प्रेरित हो कर समान धर्म वालों का भोजन पानी श्रादि द्वारा उचित सत्कार करना वात्सल्य है। इसके लिए वजूस्वामी का दृष्टान्त है अवन्ती देश के तुम्बवन सन्निवेश में धनगिरि नाम का भावक श्रेष्ठिपुत्र रहता था। वह दीक्षा लेना चाहता था। माता पिता उस के लिए योग्य कन्या को चुनते थे किन्तु वह अपनी दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट करके उसे टाल देता था। इसी लिये कोई कन्या भी उसके साथ विवाह करने को तैयार न होती थी। फरने को तैयार हो गई। दोनों का विवाह हो गया। सुनन्दा का भाई पार्यशमी सिहगिरि के पास पहले ही दीक्षा ले कुका था। कुछ दिनों बाद वह गर्भवती हो गई / धनगिरि ने उसे कहा-यह गर्भ तुम्हारा सहायक होगा, मुझे अव दीक्षा लेने दो / सुनन्दा की अनुमति मिलने पर वह सिंहगिरि के पास जाकर दीक्षित हो गया / कुछ अधिक नौ मास बीतने पर सुनन्दा के पुत्र उत्पन्न हुआ। उसे देखने के लिए आई हुई स्त्रियों कहने लगीं- अगर इसका पिता दीक्षा न लेता तो अच्छा होता / पालक पैदा होते स्मरण हो गया। यह सोच कर वह दिन रात रोने लगा कि इससे वंग पा कर मावा छोड़ देगी और मैं सुख पूर्वक दीक्षा ले लंगा।