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श्री नैन सिद्धान्त बोल समह, चौथा भाग ४७५ आगे बढ़ने पर प्राचार्य को त्रसकाय नाम का छठा वालक मिला । आभूपण छीनने के लिए उत्सुक आचार्य को देख कर उसने चार कहानियॉ सुनाई । वे इस प्रकार हैं
(क) किसी नगर को शत्रुओं ने घेर लिया। बाहर वसे हुए चाण्डाल वगैरह डर कर नगर में घुस गए । नगर के अन्दर रहने वालों ने अन्न आदि समाप्त हो जाने के भय से उन्हें फिर बाहर निकाल दिया। नगर हमारे लिए शरण भूत होगा, इस श्राशा से नगर में घुसते हुए उन चाण्डालों की दुर्दशा देख कर कोई कहने लगा-डरे हुए नागरिक तुम्हें बाहर निकालते हैं। वाहर शत्र मार रहे हैं । इस लिए हे चाण्डालों ! तुम कहीं नामो, शरण ही तुम्हारे लिए भय है।
कहानी सुनाने पर भी प्राचार्य ने उसे नही छोड़ा। वालकने दूसरी कहानी शुरू की
(ख) एक राजा बड़ा दुष्ट था । वह सदा अपने नगर में निजी पुरुषों द्वारा चोरी करवाता था । उसका पुरोहित सभी को बहुत पीटा करता था। लोग दुखी हो पर आपस में वहने लगे- यहाँ राजा स्वयं चोर है तथा पुरोहित कष्ट देने वाला है। ऐसे नगर से चले जाना चाहिए। यहॉशरण ही भय देने वाला है। इस पर
भी आचार्य ने उसे नहीं छोड़ा। __ (ग) बालक ने तीसरी कामुक ब्राह्मण की कहानी सुनाई। फिर भी आचार्य ने चालक कोन छोड़ा। उसने चौथी कथा शुरू की
(घ) किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था। उसके पास बहुत घन था । उसने धर्म समझ कर एक तालाव खुदवाया । उसके
किनारे पर मन्दिर और वगीचा वनवा कर उसने बकरे का यज्ञ : किया। यज्ञ में बकरे का होम करना धर्म समझ कर परलोक में