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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला आगे बढ़ने पर वायुकायिक नाम के चौथे बालक को देख कर प्राचार्य श्राभूषण छीनने को तैयार हो गए। बालक ने अपना . नाम बता कर कहानी शुरू की
एक युवा पुरुष बहुत बलवान था। उसके अङ्ग बहुत मोटे हो गए तथा वातरोग से पीड़ित रहने लगे। उसे देख कर किसी ने पूछा-- आप पहले लांघना, कूदना आदि विविध प्रकार के व्यायाम करते थे। आज किस रोग के कारण लकड़ी को लेकर चल रहे हैं ?
युवा ने कहा- जो हवा जेठ और आषाढ़ में सुख देती है, वही मेरे शरीर को पीड़ा दे रही है। शरण से ही मुझे भय हो रहा है। यह कथानक कह कर बालक ने रक्षा की प्रार्थना की किन्तु श्राचार्य ने उसके भी आभूषण छीन लिए।
आगे बढ़ने पर प्राचार्य ने प्राभूषण पहिने हुए वनस्पतिकाय नाम के पाँचवे बालक को देखा । उसने भी प्राचार्य को श्राभूषण खोसने के लिए उद्यत देख कर नीचे लिखी कहानी कही
फूल और फलों से लदे हुए किसी वृक्ष पर बहुत से पनीरहते थे। घृत को अपनी शरण मान कर वे निश्चिन्त हो रहे थे। वहाँ बिना किसी बाधा के निवास करते हुए उन पक्षियों के बच्चे हो गए।
और घोंसलों में क्रीड़ाएं करने लगे। - कुछ दिनों बाद वृक्ष के पास एक बेल उग गई। उस वृक्ष को लपेटती हुई वह ऊपर चढ़ गई। एक दिन उस लता के सहारे से एक साँप वृत पर चढ़ गया और पक्षियों के बच्चों को खा गया। सन्तान के नाश से दुखी हुर पक्षी विलाप करते हुए कहने लगेभाज तक उपद्रव रहित इस वृक्ष पर हम लोग सुख से रहे। शरणभूत यही वृक्ष लता युक्त होने पर हमारे लिए भयप्रद हो गया है।
कहानी कह कर बालक ने अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। किन्तु धाचार्य ने उसके भी आभूषण छीन लिए।