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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला मुख की प्राशा से उसने बहुत से बकरे मरवा डाले।आयुष्य पूरी होने पर वह ब्राह्मण भी मर कर बकरा बना। धीरे धीरे बढ़ता हुआ वह बहुत मोटा और हृष्ट पुष्ट हो गया । बामण के पुत्रों ने यज्ञ में मारने के लिए उसे खरीद लिया और तालाब के किनारे ले गए। पूर्व जन्म में अपने बनवाए हुए तालाब वगैरह को देख कर बकरे को जातिस्मरण हो गया । मैंने ही ये सब बनवाए थे किन्तु अब मेरी विपत्ति के कारण बन गए हैं। यह सोच कर वह अपने कार्यों की निन्दा करता हुआ बुधु शब्द करने लगा। उसे इस प्रकार दुखी होते हुए किसी महामुनि ने देखा। ज्ञान द्वारा पूर्व भव का वृत्तत्ति जान कर उन्हों ने कहा- ओ बकरे ! तुम्ही ने वालाव सुदाया, वृक्ष लगाए और यज्ञ शुरू किए । उन कों के उदय आने पर अब घुबु क्यों कर रहा है ?
साधु की बात सुन कर बकरा चुप हो गया। वह विचारने लगा अपने कर्म उदय में आने पर रोने से क्या होता है। साधु की वाणी से चुप हुए बकरे को देख कर ब्राह्मण आश्चर्य में पड़ गए और मुनि से पूछने लगे-भगवन् ! जैसे सांप मन्त्र के अधीन होकर, शान्त हो जाता है, उसी प्रकार आप की वात से यह बकरा चुप हों गया। आप ने ऐसा क्या किया ?
मुनि ने उत्तर दिया-आप लोगों का पिता मर कर यह चकरा बना है। तालाब आदि देख कर इसे पूर्व जन्म की बातें याद या गई । जब वह बुबु करके दुःख प्रकट कर रहा था तो मैंने कहातुम अपने कर्मों का फल भोग रहे हो। उसके लिए दुखी क्यों होते हो ? यह सुनते ही बकरा चुप हो गया। ..बामण के लड़कों ने पूछा-भगवन् ! इस बात पर कैसे विश्वास किया जाय १ कोई प्रमाण बताइये।
मुनि ने उचर दिया-पूर्व भव में स्वयं गाड़े हुए धन को यह