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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
गोत्र के होकर अन्तिम तीर्थङ्कर हुए थे इससे कोषकार ने भगवान् को 'अन्त्यकाश्यप' नाम दिया है। सूत्र यागम निर्दिष्ट उल्लेखों से भगवान् का केवल 'काश्यप' नाम ही प्रचलित था ऐसा मालूम होता है और कोपकार के निर्देश से 'अन्त्यकाश्यप नाम भी जान पड़ता है ।
कविराज धनञ्जय की तरह महावैयाकरण आचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने 'अभिधानचिन्तामणि नाम माला' कोष में भगवान् वीर के अनेक नाम बताए हैं
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" वीरः चरमतीर्थकृत् " ॥ २६ ॥
" महावीर : वर्धमानः, देवार्यः ज्ञातनन्दनः " ॥ ३० ॥
( प्रथम देवाधिदेव काड ) वीर, चरम तीर्थकृत्, महावीर, वर्धमान, देवार्थ और ज्ञातनन्दनं ये छः नाम आचार्य हेमचन्द्र ने बताये हैं । इनमें से वीर, महावीर, वर्धमान नामों का वृत्तान्त पहले लिखा गया है । 'ज्ञातनन्दन' नाम ज्ञातपुत्र का ही पर्याय है। प्रभु अंतिम तीर्थङ्कर होने से जैसे धनञ्जय ने उनको 'अन्त्यकाश्यप' कहा वैसे ही आचार्य हेमचन्द्र ने उनको 'चरम तीर्थ कृत्' कहा । चरम -अंतिम, तीर्थकृत् तीर्थङ्कर । व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'अन्त्यकाश्यप और 'चरम तीर्थकृत्' का अर्थ समान है ।
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(११) देवार्य - आचार्य हेमचन्द्र ने भगवान् का एक नवीन नाम देवार्य बताया है | इसका अर्थ करते हुए श्राचार्य' हेमचन्द्र लिखते हैं कि - "देवश्वासौ श्रार्यश्च देवार्यः । देवैः श्रर्यते-अभि I गम्यते इति वा । देवानां इन्द्रादीनां श्रर्यः स्वामी इति वा " - (उक्त श्लोक टीका ) हेमचन्द्राचार्य के कथनानुसार 'देवार्य' शब्द में 'देव आर्य' और 'देव अर्य' इस प्रकार दो विभाग से पदच्छेद है । 'देवार्य' का देवरूप चार्य अथवा देवों के याद