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श्री जेन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग है। कुल नाश से बचने के लिए यही उपाय है कि मैं जाकर राजा के पैरों में पड़ता हूँ, उस समय तुम मुझे मार डालना। श्रियक ने अनिच्छा प्रकट की।
सयडाल ने कहा-अच्छा पैरों में गिरने के समय मैं तालकूट विप खा लूगा। इससे मेरी मृत्यु स्वतः हो जायगी। ऊपर से तुम प्रहार करना। इससे राजा को तुम पर विश्वास हो जायगा और कुल का नाश वच जायगा । श्रियक ने वैसा ही किया।
सयडाल ने अपने प्राण छोड़ दिये किन्तु अन्यतीर्षिक की प्रशंसा नहीं की। इसी प्रकार सम्यक्त्व में दृढ़ पुरुषों को परतीर्थी की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
(१०) उपवृन्हणा के लिए श्रेणिक का उदाहरण
ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र आदि गुणों के धारण करने वालों की प्रशंसा करना, गुणों की वृद्धि के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना उपवृहणा कहलाती है । इसके लिए श्रेणिक का उदाहरण है____ मगध देश के राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करताथा। वह बहुत प्रतापी, बुद्धिमान् और धार्मिक था। एक बार वह घोड़े पर सवार होकर मण्डिकुक्षि नाम के उद्यान में गया। उद्यान विविध प्रकार के खिले हुए पुष्पों से आच्छादित, वृक्ष और लताओं से सुशो भित था। विविध प्रकार के पक्षी क्रीडाएं कर रहे थे। घूमते हुए राजा ने वृक्ष के नीचे बैठे हुए समाधि में लीन, ध्यानस्थ तथा तपस्वी एक मुनि को देखा।
उसे देख कर राजा मन में सोचने लगा-अहो! यह मुनि कितना रूपवान् है । शरीर की शोमा चारों तरफ फैल रही है। मुख से सौम्यतां और क्षमा आदि गुण टपक रहे हैं। इस प्रकार की शरीरसम्पति और गुणों के होने पर भी इसने संसार छोड़ दिया। इस के वैराग्य और अनासक्ति भी अपूर्व हैं।