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________________ ४६४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला की स्तुति कर रहा था। इसके बाद वह दीनार खोजने के लिए हाथ पैर मारने लगा । कुछ न मिलने पर वह लज्जित हो गया। इसके बाद सयडाल ने कहा-अगर गङ्गा नहीं देती तो मैं देता हूँ। यह कह कर उसने दीनार वाला कपड़ा निकाला । राजा को दिखा कर उसे दे दियो । वररुचि को अपना मुंह दिखाना भी कठिन हो गया। वह वहाँ से भाग गया। वररुचि मन्त्री पर बहुत क्रुद्ध हो गया था, इस लिए उसके छिद्र हूंढने लगा। मन्त्री की एक दासी को अपने साथ मिला लिया । उससे नित्य प्रति वह मन्त्री के घर का हाल जानने लगा। वह मूर्ख दासी सब कुछ कह देती थी। कुछ दिनों बाद श्रियक के विवाह की तैयारी होने लगी। किसी राजा के यहाँ दुकना था, इस लिए फौज, हथियार वगैरह पूग सरनाम इकट्ठा किया जाने लगा। दासी ने यह बात वररुचि को कह दी। उसे छिद्र मिल गया। छोटे मोटे नौकर चाकरों में उसने यह बात फैलानी शुरू कर दी एहु लोउ गावि जाणह, जं सयडालु करेसह। राय नंदु मारेविउ, सिरियउ रज्जि ठवेसह॥ भावार्थ-लोक इस बात को नहीं जानते कि सयडाल क्या करना चाहता है, राजा नंद को मार कर अपने पुत्र श्रियक को गद्दी पर बैठाना चाहता है। परम्परा से यह बात राजा के पास पहुँच गई । उसने विश्वस्त पुरुषों को जाँच के लिए मेजा। उन्होंने मन्त्री के घर जाकर सारी तैयारियाँ देखीं। राजा कुपित हो गया। सयडाल ने राजा के पैरों में गिर कर बहुत समझाने की कोशिश की किन्तु वह अधिकाधिक विमुख होता गया । उसने घर जाकर भियक को बुला कर कहा-वत्स ! उस दुष्ट ब्रामण ने राजा को हम पर कुपित कर दिया
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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