________________
४४६ . श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला की बातों से उस मेंढक ने भी यह समाचर जाना । भगवान् के दर्शन करने के लिए वह बावड़ी से बाहर निकला। उसी समय भगवान के दर्शनार्थ जाते हुए राजा श्रोणिक के घोड़े के पैर नीचे दब कर वह कुचला गया। शुभ भाव पूर्वक मृत्यु प्राप्त करके दर्दुराक नामक देव हुआ।
वहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करेगा। (ज्ञाताधर्मकयांग सूत्र १३ वॉ अध्ययन)
(४) सम्यक्त्व गुण की प्राप्ति के लिए घमासार्थवाह की कथासम्मत्तस्स गुणोऽयं चिंतचिंतामणिस्स ज लहइ । सिवसग्गमणुयमुहसंगयाणि धणसत्थवाहोव्य ॥
अर्थात्-सम्यक्त्व रूपी चिन्तामणि रत्न का माहात्म्य अचिन्त्य है। इसकी प्राप्ति से मोक्ष, स्वर्ग और मनुष्य लोक के सभी सुख प्राप्त होते हैं, जैसे धना सार्थवाह को प्राप्त हुए।
जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में अमरावती के समान ऐश्वर्य वाला तितिप्रतिष्ठित नाम का नगर था। वहाँ प्रसन्नचन्द्र नाम का राजा राज्य करता था। उसी नगर में कुबेर से भी अधिक ऋद्धि वाला धन्ना सार्थवाह रहता था।
एक वार धन्ना सार्थवाह ने सव साधनों से सुसज्जित होकर वसन्तपुरनाने का विचार किया। प्रस्थान से पहले लोगों को सूचित करने के लिए पटह द्वारा घोषणा कराई-धन्ना सार्थवाह वसन्तपुर के लिए प्रस्थान कर रहा है। जिस किसी को वहाँ जाने की इच्छा हो वह उसके साथ चले। मार्ग में जिस के पास भोजन, वस्त्र, पात्र, आदि किसी भी वस्तु की कमी होगी उसे वही दी जायगी। किसी प्रकार कर प्रभाव न रहने दिया जाएगा। __इस घोषणा को सुन कर विविध प्रकार का धन्धा करने की इच्छा से बहुत से सेवक, कृपण तथा वाणिज्य करने वाले लोग