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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला करता था, दक्षिणा के लालच से मूढ़ होकर राजाओं की वा धनी लोगों की खुशामद करता था इस प्रकार भगवान के समय का ब्राह्मण अपकृष्ट हो गया था । भगवान् के समय की समाज व्यवस्था का हूबहू चित्र जैन सूत्रों में और बौद्ध पिटक ग्रन्थों में खींचा हुआ है। उसको देखने से उस समय के ब्राह्मण की अपकृष्ट दशा का ठीक ठीक ख्याल आता है । उस अपकृष्ट ब्राह्मण को उत्कृष्ट बनाने के लिए भगवान् सच्चे ब्राह्मण हुए और भगवान् ने अपने आचरणों से और वचनों, से अपने अनुयायियों को सच्चे ब्राह्मण का स्वरूप भी बताया। इसी कारण भगवान् 'ब्राह्मण' नाम से ख्यात हुए । 'ब्राह्मण' का पुराना प्राकृत उच्चारण 'वह्मण' चंभण'
और 'माहण' होता है। जैन व्याख्याकारों ने माहण अर्थात् 'मत हनों' का भाव 'माहण' शब्द से दिखाया है और जो हनन हिंसा नहीं करता है अथवा 'हनो' शब्द का उच्चारण नहीं करता है उसको 'माहण' बताया है। परन्तु व्याकरण की दृष्टि से देखा जाय तो 'ब्राह्मण' शब्द का सम्बन्ध 'ब्रह्म' शब्द के साथ है न कि • 'माहन के साथ।
कोशकार महाकवि धनञ्जय ने अपनी धनन्जय माला में भगवान् महावीर के नामों का उल्लेख इस प्रकार किया है
"सन्मतिः, महतिवीरः,महावीरोऽन्त्यकाश्यपः। नाथान्वयः वर्धमानः, यत्तीर्थमिह सांप्रतम् ॥११॥
उक्त श्लोक में महावीर के छ: नाम बताए हैं-सन्मति । महतिवीर। महावीर । अन्त्यकाश्यप, नाथान्वय और वर्धमान । इनमें से महावीर, वर्धमान और नाथान्वय नामों का वृत्तान्त ऊपर हो चुका, शेष तीन का इस प्रकार है(5) सन्मति-'सती मतिर्यस्य स सन्मतिः' अर्थात् जिसकी मति सद्रूप है, अचल है, शाश्वत है, सत्यरूप है, विभावों के कारण