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श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह, चौथा भाग में इसका नाम वसाडपट्टी है। भगवान् की माता 'विशाला' नगरी की रहने वाली थी। इस कारण माता त्रिशला का अपार नाम 'विशाला' हुआ और विशाला के पुत्र का नाम वैशा. लिक पड़ा, विशालायाः अपत्यम्-वैशालिक, प्रा० वेसालिय । जैसे माता के 'विदेह' देश के साथ सम्बन्ध रखने से भगवान् का नाम 'विदेह' पड़ा, ठीक उसी प्रकार माता का 'विशाला' नगरी के साथ सम्बन्ध होने के कारण भगवान् का नाम वैशालिक हुआ। (७) मुणि-मुनि और माहण-ब्राह्मण । आचाराङ्ग सूत्र में 'मुणिणा हु एतं पवेदित' (अध्ययन पॉचवां उद्देशक चौथा ), मुगिणा पवे दितं (अध्ययन पाँचवां उद्देशक तीसरा), 'मुणिणा हु एवं पवेड्यं' (अध्ययन दूसरा उद्देशा तीसरा) इस प्रकार अनेक जगह भगवान् को मात्र 'मुणि-मुनि' शब्द से संबोधित किया है। मालूम होता है कि भगवान् का वाचा संयम असाधारण था। साढ़े बारह वर्ष तक भगवान् ने अपनी आत्मशुद्धि के लिए जो कठोरतम साधना की, इसमें भगवान् ने वचन प्रयोग बहुत कम किया था इस प्रकार भगवान् अपने असाधारण मौन गुण के कारण 'मुनि' शब्द से ख्यात हुए । इसी कारण भगवान् कि ख्याति 'माहणब्राह्मण'शब्द से भी हुई थी। आचाराङ्ग सूत्र में लिखा है कि 'माहणेणं मतिमता' (अध्ययन ६, उद्दशक १-२-३-४) अर्थात् 'मतिमान् ब्राह्मण ने- भगवान् वीर ने इस प्रकार कहा है ऐसा लिख कर सूत्रकार ने भगवान को 'ब्राह्मण' शब्द से भी संबोधित किया है। ब्राह्मण शब्द का मूल 'ब्रह्म' शब्द है । ब्रह्म वेति स ब्रामणः अर्थात् जिसने ब्रह्म को जाना वह ब्राह्मण है।
बहुत पुराने समय के ब्राह्मण ब्रह्मचारी थे वा सर्वथा समभावी-अहिंसक सत्यवादी और अपरिग्रही थे। परन्तु भगवान के जमाने में प्रामण वर्ग विकृत हो गया था । पशुयागादि में हिंसा