________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग ४०१ तीन भांग पाये जाते हैं। लोम कपाय वाले नारकियों में छः और शेष जीवों में तीन मांगे होते हैं। अकपायी जीवों की वक्तव्यता नोसंझी और नोअसंज्ञी की तरह है।
(८)ज्ञान द्वार-ज्ञान की वक्तव्यता सम्यग्दृष्टि की तरह है।ाभिनिवोधिक ज्ञानी और श्रुतज्ञानी वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रियों में छ: मांगे होते हैं, बाकी में तीन मांगे होते हैं। अवधिज्ञानी तिर्यच पञ्चेन्द्रिय आहारक ही होते हैं। शेष अवधिज्ञानी जीवों में तीन मांगे होते हैं। मनःपर्ययज्ञानी जीव श्राहारक ही होते हैं। केवलज्ञानी जीवों की वक्रव्यता नोसंज्ञी नोभसंज्ञी जीवों की तरह है।
अज्ञान की अपेक्षा-मति अज्ञानी और अत अज्ञानी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भांगे पाये जाते हैं। विभंगज्ञानी तिर्यच पञ्चेन्द्रिय और मनुष्य आहारक ही होते हैं, अनाहारक नहीं। (8)योग द्वार-सयोगी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन मांगे होते हैं। मनयोगी और वचनयोगी जीवों की वक्तव्यता सम्यगमिथ्याटि जीवों की तरह है। वचनयोग में विकलेन्द्रियों का ग्रहण होता है। काययोगी जीवों में एकेन्द्रिय के सिवाय तीन मांगे होते है। अयोगी जीव और सिद्ध भगवान् अनाहारक होते हैं।
(१०) उपयोग द्वार-साकार और अनाकार दोनों प्रकार के उपयोग वाले जीव में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन मांगे पाये जाते हैं।
(११) वेद द्वार-स्त्रीवेद और पुरुष वेद वाले जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं। एकेन्द्रिय जीवों को छोड़ कर नपुंसक वेद वालों में तीन भांगे पाये जाते हैं। अवेदी आहारक और अनाहारक दोनों तरह के होते हैं। सिद्ध भनाहारक होते हैं।
(१२)शरीर द्वार-सामान्य रूप से सशरीरी जीवों में आहारक अनाहारक के तीन मांगे पाये जाते हैं। जिन जीवों के औदारिक शरीर होता है वे माहारक ही होते हैं अनाहारक नहीं। जिन जीवों के क्रिय