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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (८) संवर भावना- हरिकेशी मुनि ने भाई थी। पूर्व जन्म में किये गए जाति मद और रूप मद के कारण हरिकेशी मुनि चाण्डाल कुल के अन्दर उत्पन्न हुए थे और बहुत कुरूप थे। कुरूप होने के कारण उनका जगह जगह तिरस्कार होता थे। उनके हृदय में विचार उत्पन हुआ कि पूर्व जन्म के अशुभ कर्मों (पाश्रवों) के द्वारा मुझे इस भव में यह कटु फल भोगना पड़ रहा है। अब ऐसा . प्रयत्न क्यों न किया जाय जिससे इन आश्रवों का पाना ही रुक जाय । संसार सम्बन्धी क्रिया का त्याग रूप संवर भावना उनके हृदय में प्रवल हो उठी। संसार का त्याग कर वे संयम मार्ग में प्रबजित हो गए । पाँच समिति, तीन गुप्ति, दस विध यतिधर्म और परीपह सहन से आते हुए कर्मों को रोकने लगे। उत्कृष्ट तप से सब कर्मों का चय कर मोक्षपद प्राप्त किया।
महामुनि हरिकेशी का वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के बारहवें अध्ययन में है।
(8) निर्जरा भावना-अर्जुन माली ने भाई थी । अर्जुन राजगृही नगरी में रहने वाला एक माली था । यक्षावेश के कारण उसने बहुत से पुरुषों को मार डाला था। श्रमण भगवान महावीर को वन्दना करने के लिये जाते हुए सुदर्शन श्रावक के निमित्त से उसका यक्षावेश दूर होगया । सुदर्शन श्रावक के साथ ही वह भी भगवान् को वन्दना करने के लिये गया। धर्मोपदेश सुन कर उसे वैराग्य उत्पन होगया। भगवान् के पास दीक्षा लेकर उसी दिन से बेले बेले पारणा करता हुआ विचरने लगा । गोचरी के लिये जव राजगृही में जाता था तब उसे देख कर कोई कहता-इसने मेरे पिता को मारा, भाई को मारा, बहिन को मारा, पुत्र को मारा, माता को मारा इत्यादि कह कर कोई निन्दा करता, कोई हल्के शब्दों का प्रयोग। करवा, कोई चपेटा मारता और कोई चूंसा मारता । भर्जुनमाली