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भी सेठिया जै-प्रथमाला . कर एकाकी विचरने लगे। उस अपूर्व त्यागी के त्याग की कसौटी करने के लिए इन्द्र पाया। इन्द्र द्वारा किए गए प्रश्नों का उत्तर नमिराजर्षि ने बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण दिया है। इनके प्रश्नोत्तरों का वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के नवे अध्ययन में बड़े ही रोचक शब्दों में दिया गया है।
(५) अन्यत्व भावना-मृगापुत्र ने भाई थी। पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण मृगापुत्र योगमार्ग पर जाने के लिए तत्पर होता है।माता पिता अपने पुत्र को योगमार्ग से रोकने के लिए मोह और ममताभरी बातें कहते हैं । तब मृगापुत्र उन्हें कहता है कि हे माता पितामो! कौन किसका सगा सम्बन्धी और रिश्तेदार है ? ये सभी संयोग क्षणमङ्ग र हैं। यहाँ तक कि यह शरीर भी अपना नहीं है। फिर दूसरे पदार्थ तो अपने हो ही रे सकते हैं ? कामभोग किंपाक फल के सदृश हैं। यदि जीव इन्हें नहीं छोड़ता तो ये कामभोग स्वयं इसे छोड़ देंगे। जब छोड़ना निश्चित है तो फिर इन्हें स्वेच्छापूर्वक क्यों न छोड़ दिया जाय। स्वेच्छा से छोड़े हुए कामभोग दुःखप्रद नहीं होते । यही भाव निम्नलिखित गाथाओं में बताया गया है
जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि थे। श्रहो दुक्खोहु संसारो जत्थ कीसंति जंतुणो॥ खितं वत्थु हिरणं च, पुत्त दारं च षंधवा । चइत्ता एं इमं देहं, गंतव्वमवसस्स मे॥ जह किंपागफलाएं, परिणामो न सुंदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो।
अर्थात्-यह सारा संसार अत्यन्त दुःखमय है। इसमें रहने वाले प्राणी जन्म, जरा, रोग तथा मरण के दुखों से पीड़ित हो रहे हैं। ___ ये सब क्षेत्र, घर, सुवर्ण, पुत्र, स्त्री, माता, पिता, भाई, बान्धव तथा यह शरीर भी अपना नहीं है। आगे या पीछे कभी न कमी