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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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में संयम अङ्गीकार किया है ? अनाथी मुनि फरमाने लगेहोम महाराय ! पाह। मज्झ न विज्जई । saणुकंप सुहिं वा वि, कंचि नाभिसमेमहं ॥ अर्थात् - हे महाराज ! मैं अनाथ हूँ, मेरा रक्षक कोई नहीं है और अभी तक ऐसा कोई कृपालु मित्र भी मुझे नहीं मिल सका है। इसी नाथ भावना से प्रेरित होकर मैंने संयम स्वीकार किया है ।
महाराज श्रेणिक के पूछने पर अनाथी मुनि ने अनाथता और सनाथता का विस्तृत विवेचन कर उसे समझाया । इसका अधिकर उत्तराध्ययन सूत्र के महानिर्ग्रन्थीय नामक बीसवें अध्ययन में है । इसी अध्ययन की अनाथता को बतलाने वाली गाथाओं का अर्थ पन्द्रहवें बोल संग्रह में दिया जायगा ।
(३) संसार भावना - भगवान् मल्लिनाथ के मित्र राजा प्रतिबुद्ध, चन्द्रछाय, रुक्मी, शंख, अदीनशत्रु और जितशत्रु नामक छः राजाओं'
भाई थी । ये पूर्वभव में सातों मित्र थे । सातों ने एक साथ दीक्षा ली थी। इस भव में मल्लिनाथ स्त्री रूप में पैदा हुए और ये छहों अलग अलग देश के राजा हुए | मल्लिकुंबरी के रूप लावण्य की प्रशंसा सुन कर ये छहों उसके साथ विवाह करने के लिए आए । मल्लिकुंवरी ने उन्हें शरीर का अशुचिपन और संसार की असारता बतलाते हुए मार्मिक उपदेश दिया जिससे उन्हें जातिस्मृति ज्ञान पैदा होगया । वे अपने पूर्वभा को देखने लगे और विचारने लगे कि पूर्वभव में हम सब ने एक साथ दीक्षा ली थी। हम सब ने एक सरीखा तप करने का निश्चय किया या किन्तु माया सहित अधिक तपस्या करने से इनको स्त्रीवेद का बन्ध हो गया था, साथ ही दीस वोलों की उत्कृष्ट आराधना करने से तीर्थङ्कर नाम कर्म भी उपार्जन किया
था । इस भत्र में ये स्त्री रूप में उन्नीसवें तीर्थङ्कर हुए हैं । संसार की कैसी विचित्रता है कि आज हम उन्हीं त्रिलोकपूज्य तीर्थङ्कर
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