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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला तैयार हो इस लिये मोक्षाभिलाषी प्रात्मा इसका वारवार चिन्तन करते हैं और इस लिये इसका नाम भावना रक्खा है। वाचक संख्य श्री उमास्वाति ने भावना को अनुप्रेक्षा के नाम से कहा है। अनुप्रेक्षा का अर्थ आत्मावलोकन है।
भावनाएं मुमुक्षु के जीवन पर कैसा असर करती हैं यह बात भरत चक्रवर्ती, अनाथी मुनि, नमिराजर्षि श्रादि महापुरुषों के जीवन का अध्ययन करने से जानी जा सकती है। भावनाओं ने इनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया, उन्हें बहिरात्मा से अन्तरात्मा बना दिया। चित्त शुद्धि के लिए एवं आध्यात्मिक विकास की ओर उन्मुख करने के लिए ये भावनाएं परम सहायक सिद्ध हुई हैं।
बारह भावनाएं ये हैं-(१) अनित्य भावना (२) अशरण भावना (३) संसार भावना (४) एकत्व भावना (५) अन्यत्व भावना (६) अशुचि भावना (७) आश्रव भावना(८) संवर भावना (8) निर्जरा भावना (१०) लोक भावना (११) बोधिदुर्लभ भावना (१२) धर्म भावना।
(१) अनित्य भावना-संसार अनित्य है । यहाँ सभी वस्तुएं परिवर्तनशील एवं नश्वर है। कोई भी वस्तु शाश्वत दिखाई नहीं देती। जो पदार्थ सुबह दिखाई देते हैं, सन्ध्या समय उनके अस्तित्व का पता नहीं मिलता। जहाँ प्रभात समय मंगल गान हो रहे थे, शाम को वहीं रोना पीटना-सुनाई देता है। जिस व्यक्ति का सुबह राज्याभिषेक हो रहा था, शाम को उसकी चिता का धुंआ दिखाई देता है । यह जीवन भङ्गुरता पद पद पर देखते हुए भी मानव अपने को अमर समझता है और ऐसी प्रवृत्तियाँ करता है मानो उसे यहाँ से कमी जाना ही न हो, यह उसकी कितनी अज्ञानता है। यह शरीर रोगों का घर है, यौवन के साथ बुढ़ापा जुड़ा हुआ है, ऐश्वर्य विनाशशील है और जीवन के साथ मृत्यु है। महात्मा पुरुष