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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
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नामक चौथा भंग होता है। तीसरा भंग चौदह प्रकृतियों में नहीं होता । संज्वलन की चौकड़ी का बन्ध अनादि काल से चला आता है किन्तु नवें अनिवृत्ति चादर गुणस्थान में रुक जाता है, इस लिए इसमें दूसरा अनादि सान्त भंग होता है । उपशम श्रेणी वाले जीव की अपेक्षा चौथा सादि सान्त भंग भी होता है। निद्रा, प्रचला, तैजस कार्मण, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, भय और जुगुप्सा इन तेरह प्रकृतियों का बन्ध अनादि है, किन्तु पूर्वकरण के समय जब रुक जाता है, तब दूसरा भंग होता है । पूर्वकरण से गिर कर जीव जब दुबारा उपरोक्त प्रकृतियों को बाँधता है और पूर्वकरण को प्राप्त कर फिर रोक देता है तो उनका बन्ध सादि सान्त हो जाता है । इस प्रकार चौथा भंग होता है ।
प्रत्याख्यानावरण चौकड़ी का बन्ध अनादि होता हुआ पाँचवें देशविरति गुणस्थान तक रहता है। इस प्रकार दूसरा भंग हुआ । वहाँ से गिरने पर दुबारा होने वाला बन्ध सादि सान्त है। इस तरह चौथा भंग है ।
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प्रत्याख्यान चौकड़ी का बन्ध अनादि है किन्तु चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक रहता है। इस प्रकार दूसरा भंग है । चौथा भंग पहले सरीखा है ।
मिथ्यात्व, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि और अनन्तानुबन्धी चौकड़ी का बन्ध मिथ्यादृष्टि जीव के अनादि काल से होता है । सम्यक्त्व प्राप्त करने पर इनका बन्ध नहीं होता है । इस प्रकार अनादि सान्त दूसरा भंग है। दुबारा मिथ्यात्व प्राप्त होने पर होने वाला बन्ध सादि सान्त है ।
इस प्रकार ध्रुववन्धिनी प्रकृतियों में भंगप्ररूपणा है । इन में पहला भंग भव्य की अपेक्षा से है। दूसरा सम्यक्त्व प्राप्त करनेवाले अनादि मिध्यादृष्टि जीव की अपेक्षा से और चौथा सम्यक्त्व
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