________________
३३०
श्री सेठिया जेन प्रन्थमाला
लेश्या - सौधर्म और ईशान कल्प में मुख्य रूप से तेजोलेश्या रहती है । सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या । लान्तक से अच्युत देवलोक तक शुक्ल लेश्या
I
दृष्टि - सौधर्म आदि चारों देवलोकों में सम्यग्दृष्टि, मिध्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि तीनों प्रकार के देव होते हैं ।
/
ARAN
ज्ञान- सौधर्म आदि कल्पों में सम्यग्दृष्टि देवों के तीन ज्ञान होते हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान । मिध्यादृष्टि देवों के तीन अज्ञान होते हैं- मत्यज्ञान, श्रुत अज्ञान और विभंग ज्ञान । अवधि ज्ञान - सौधर्म और ईशान कल्प में जघन्य अवधि ज्ञान अंगुल का असंख्यातवाँ भाग होता है ।
शङ्का - अङ्गुल के असंख्यातवें भाग जितने क्षेत्र परिमाण वाला अवधिज्ञान सब से जघन्य है । सर्वजघन्य अवधि ज्ञान मनुष्य और तिर्यश्चों में ही होता है । देव और नारकी जीवों में नहीं । इस लिए देवों में अंगुल के श्रसंख्यातवें भाग रूप सर्वजधन्य अवधि ज्ञान का बताना ठीक नहीं है ।
समाधान- उपपात अर्थात् जन्म के समय देवों के पूर्वभव का वधि ज्ञान रहता है। ऐसी दशा में किसी जघन्य अवधि ज्ञान वाले मनुष्य या विर्यश्व के देव रूप में उत्पन्न होते समय जघन्य अवधि ज्ञान हो सकता है ।
सौधर्म और ईशान में उत्कृष्ट अवधिज्ञान नीचे रत्नप्रभा के अधोभाग तक, मध्यलोक में असंख्यात द्वीप और समुद्रों तक तथा ऊर्ध्वलोक में अपने विमान के शिखर तक होता है। ऊपर तथा मध्यभाग में सभी देवलोकों में अवधिज्ञान इसी प्रकार होता है। नीचे सनत् - कुमार और माहेन्द्र कल्प में दूसरी पृथ्वी के अधोभाग तक । ब्रह्मलोक और लान्तक में तीसरी पृथ्वी के अधोभाग तक । शुक्र और सहखार कल्प में चौथी तक । श्राथत, प्राणत, चारण और अच्युत कल्पों
।