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श्री सेठिया जैन प्रन्थसाला कल्प में काले नहीं है। ब्रह्मलोक और लान्तक में काले और नीले नहीं हैं । महाशुक्र और सहसार देवलोक में पीले और सफेद दो ही रंगों वाले हैं। प्राणत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोक में सफेद हैं। सभी विमान नित्यालोक, नित्य उद्योत तथा स्वयं प्रभा वाले हैं। मनुष्य लोक में गुलाव, चमेली, चम्पा, मालती
आदि सभी फूलों की गन्ध से भी उन विमानों की गन्ध बहुत उत्तम है। रूई, मक्खन आदि कोमल स्पर्श वाली सभी वस्तुओं से उन विमानों का स्पर्श बहुत अधिक कोमल है। जो देव एक लाख योजन लम्बे तथा एक लाख योजन चौड़े जम्बूद्वीप की इक्कीस प्रदक्षिणाएं तीन चुटकियों में कर सकता है वह अगर उसी गति से सौधर्म और ईशान कल्प के विमानों को पार करने लगे तो कर महीनों में किसी को पार कर सकेगा, किसी को नहीं । वे सभी विमान रत्नों के बने हुए हैं। पृथ्वीकाय के रूप में विमानों के जीव उत्पन्न होते तथा मरते रहते हैं किन्तु विमान शाश्वत हैं। । गतागत- देव गति से चव कर जीव मनुष्य या तिर्यञ्च रूप में उत्पन्न होता है, नरक में नहीं जाता । इसी प्रकार मनुष्य और तिर्यच ही देवगति में जा साते हैं, नारकी जीव नहीं । तिर्यञ्च पाठ देवलोक सहस्रार कल्प से आगे नहीं जा सकते।
सहस्रार कल्प तक देवलोक में एक समय एक, दो, तीन, संख्यात या असंख्यात तक जीव उपक हो सकते हैं। प्राणत, प्राणत, पारण
और अच्युत में जघन्य एक, दो तथा उत्कृष्ट संख्यात ही उत्पन्न हो सकते हैं, असंख्यात नहीं, क्योंकि आणत श्रादि देवलोकों में मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं और मनुष्यों की संख्या संख्यात है।
संख्या-यदि प्रत्येक समय असंख्यात देवों का अपहार हो तो सौधर्म और ईशान कल्प को खाली होने में असंख्यात उत्स. पिणी तथा अवसर्पिणी काल लग जाय । इसी प्रकार सहसार कन्प