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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा माग ३२७ पल्योपम, मध्यम में इक्कीस सागरोपम और छह पन्योपम, वाह्य में इक्कीस सागरोपम और पाँच पल्योपम की स्थिति है।
(जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३ वैमानिकाधिकार, सूत्र २०८) सौधर्म और ईशान कल्पों में विमान घनोदधि पर ठहरे हुए हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में धनबात पर । लान्तक में दोनों पर । महाशुक्र और सहस्रार में भी दोनों पर । आणत, प्राणत, श्रारण और अच्युत में आकाश पर।
मोटाई और ऊँचाई-सौधर्म और ईशान कल्प में विमानों की मोटाई सचाईस सौ योजनं और ऊँचाई पाँच सौ योजन की है अर्थात् महल ५०० योजन ऊंचे हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में मोटाई छब्बीस सौ तथा ऊँचाई छह सौ योजन की है। ब्रह्म
और लान्तक में मोटाई पच्चीस सौ योजन और ऊँचाई सात सौ योजन की है। महाशुक्र और सहस्रार कन्प में मोटाई चौबीस सौ
और ऊँचाई आठ सौ योजन है । आणत, प्राणत, पारण और अच्युतं देवलोक में मोटाई तेईस सौ योजन और ऊँचाई नौ सौ योजन है।
संस्थान-सौधर्मादि कन्यों में विमान दो तरह के हैं-श्रावलिकाप्रविष्ट और पावलिका वाह्य । आवलिका प्रविष्ट तीन संस्थानों वाले हैं। वृत्त (गोल), व्यत्र (त्रिकोण) और चतुरन (चार कोण वाले) पावलिका वाह्य अनेक संस्थानों वाले हैं।
विस्तार-इनमें से बहुत से विमान संख्यात योजन विस्तृत है, बहुत से असंख्यात योजन । संख्यात योजन विस्तार वाले विमान जघन्य जम्बूद्वीप जितने बड़े हैं । मध्यम ढाई द्वीप जितने बड़े हैं और उत्कृष्ट असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं।
वर्ण-सौधर्म और ईशान कम्प में विमान पाँचों रंग वाले हैंकाले, नीले, लाल, पीले और सफेद । सनत्कुमार और माहेन्द्र