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३२६ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला श्राभ्यन्तर पदा में छह हजार देव हैं। मध्यम में आठ हजार और बाह्य में दस हजार । स्थिति सनत्कुमार के समान है। ब्रह्मदेवलोक की प्राभ्यन्तर पर्षदा में चारमध्यम में छह और बाह्य में आठ हजार देव हैं । आभ्यन्तर में साढ़े आठ सागरोपम और पाँच पल्योपम, मध्यम में साढ़े आठ सागरोपम और चार पन्योपम, वाह्य में साढ़े पाठ सागरोपम और तीन पल्योपम की स्थिति है। लान्तक कल्प की प्राभ्यन्तर पर्षदा में दो हजार, मध्यम में चार हजार और बाह्य पर्षदा में छह हजार देव हैं। प्राभ्यन्तर में बारह
सागरोपम और सात पन्योपम, मध्यम में बारह सागरोपम और . छह पल्योपम तथा बाह्य में बारह सागरोपम और पाँच पल्योपम
की स्थिति है । महाशुक्र कल्प की पाभ्यन्तर पर्षदा में एक हजार, मध्यम में दो हजार और पाय में चार हजार देव हैं। आभ्यन्तर में साढ़े पन्द्रह सागरोपम और पाँच पल्योपम, मध्यम में साढ़े पन्द्रह सागरोपम और चार पन्योपा और बाह्य में साढ़े पन्द्रह सागरोपम तथा तीन पल्योपम की स्थिति है । सहस्रार कल्प की आभ्यन्तर पर्षदा में पाँच सौ, मध्यम में एक हजार तथा बाह्य में दो हजार देव हैं। आभ्यन्तर में साढ़े सतरह सागरोपम तथा सात पल्योपम, मध्यम में साढ़े सतरह सागरोपम तथा छह पल्योपम, बाह्य में साढ़े 'सतरह सागरोपम तथा पाँच पल्योपम की स्थिति है। प्राणत और प्राणत देवलोकों की प्राभ्यन्तर पर्षदा में ढाई सौ, मध्यम में पॉच सौ और पाह्य में एक हजार देव हैं। आभ्यन्तर में साढ़े अठारह सागरोपम और पाँच पल्योपम, मध्यम में साढ़े अठारह सागरोपम
और चार पन्योपम तथा बाह्य में साढ़े अठारह सागरोपम और तीन पन्योपम की स्थिति है। प्रारण और अच्युत देवलोक की श्राभ्यन्तर पर्षदा में सवा सौं, ध्यम में ढाई सौ और वाह्य में पाँच सौ देव हैं। आभ्यन्तर पर्षदा में इकीस सागरोपम और सात