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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
दक्षिण चौड़ा है। उसमें आठ लाख विमान हैं। मध्य में माहेन्द्रावतंसक है। बाकी चार अवतंसक ईशान कल्प के समान हैं । वहाँ माहेन्द्र नामक देवेन्द्र है । वह आठ लाख विमान, सचर हजार सामानिक देव तथा २८०००० अंगरक्षक देवों का स्वामी है। बाकी सब सनत्कुमार की तरह जानना चाहिए ।
(५) ब्रह्म देवलोक - सनत्कुमार और माहेन्द्र के ऊपर असंख्यात योजन जाने पर ब्रह्म नाम का देवलोक आता है । वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर दक्षिण चौड़ा है। पूर्ण चन्द्र के आकार वाला है । किरण माला या कान्तिपुन की तरह दीप्त है । इसमें चार लाख विमान हैं । अवतंसक सौधर्म कल्प के समान हैं, केवल बीच में ब्रह्मलोकावतंसक है । वहाँ ब्रह्म नामक देवों का इन्द्र रहता है । वह चार लाख विमान, साठ हजार सामानिक देव, २४०००० अंगरक्षक तथा दूसरे बहुत से देवों का अधिपति है |
(६) लान्तक देवलोक - ब्रह्म लोक से असंख्यात योजन ऊपर उसी के समान लम्बाई, चौड़ाई तथा श्राकार वाला लान्तक देवलोक है। वहाँ पचास हजार विमान हैं । अवर्तक ईशान कल्प के समान हैं। मध्य में लान्तक नाम का अवतंसक है। वहाँ लान्तक नामक देवों का इन्द्र है । वह पचास हजार विमान, पचास हजार सामानिक, दो लाख आत्मरक्षक तथा दूसरे बहुत से देवों का स्वामी है।
(७) महाशुक्र - लान्तक कल्प के ऊपर उसी के समान लम्बाई चौड़ाई तथा आकार वाला महाशुक्र देवलोक है। वहाँ चालीस हजार विमान हैं। मध्य में महाशुक्रावतंसक है। बाकी चार अवतंसक सौधर्मावतंसकों के समान जानने चाहिएं। इन्द्र का नाम महाशुक्र
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। वह चालीस हजार विमान, चालीस हजार सामानिक देव, एक लाख सोलह हजार आत्मरक्षक देव तथा दूसरे बहुत से देवों का अधिपति है ।