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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग लाख विमान हैं। उनके मध्य भाग में पॉच अवतंसक हैं-अंकावतंसक, स्फटिकावतंसक, रत्नावतंसक, जातरूपावतंसक और मध्य में ईशानावतंसक । यहाँ ईशान नाम का देवेन्द्र है। वह हाथ में शूल धारण करता है। इसका वाहन वृषम है। वह लोक के उत्तरीय प्राधे माग का अधिपति है।
ईशानेन्द्र अठाईस लाख विमान, अस्सी हजार सामानिक देव, तेतीस त्रायस्त्रिंश देव, चार लोकपाल, परिवार सहित आठ मनमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात प्रकार की सेना, सात सेनाधिपतियों, तीन लाख बीस हजार प्रात्मरक्षकों तथा दूसरे बहुत से देवी देवताओं का स्वामी है.।।
(३) सनत्कुमार देवलोक-सौधर्ष देवलोक से असंख्यात हजार योजन ऊपर सनत्कुमार देवलोक है। लम्बाई, चौड़ाई, आकार आदि में सौधम देवलोक के समान है। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर दक्षिण चौड़ा है। वहाँ सनत्कुमार देवों के बारह लाख विमान हैं। बीच में पॉच अवतंसक है- अशोकावतंसक, सप्ताणवतंसक, चंपकावतंसक, चूतावतंसक और मध्य भाग में सनत्कुमारावतंसक । वे अवतंसक रनमय, स्वच्छ थावत् अतिरूप हैं। वहाँ बहुत देव रहते हैं। सभी विशाल ऋद्धि वाले यावद दसों दिशाओं को सुशोमित करने वाले हैं। वहाँ अग्रमहिषियाँ नहीं होती। वहाँ देवों का इन्द्र देवराज सनत्कुमार है। वह रन रहित
आकाश के समान शुन्न वस्त्रों को धारण करता है। उसके बारह लाख विमान, बहत्तर हजार सामानिक देव आदि शवेन्द्र की तरह जानने चाहिएं । केवल वहाँ पर अग्रमहिषियाँ नहीं होतीं तथा दो लाख अट्ठासी हजार आत्मरक्षक देव होते हैं।
(१)माहेन्द्र कल्प देवलोक-ईशान देवलोक से कई कोडाकोड़ी योजन ऊपर माहेन्द्र कल्प है। वह पूर्व पश्चिम लम्बा है और उसर