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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
जाते हैं कि सब जीवों की शक्ति एक सरीखी नहीं होती । जो कम ताकत या डरपोक हैं वे ऐसे मौके पर इतने घबरा जाते हैं कि धर्मध्यान के बदले श्रध्यान करने लग जाते हैं। ऐसे अधिकारियों की अपेक्षा आगारों का रखा जाना आवश्यक है | आगार । रखने में अधिकारी मेद ही मुख्य कारण है ।
( श्रावश्यक कायोत्सर्गाध्ययन )
बारह
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८०८ - कल्पोपपन्न देव वैमानिक देवों के दो भेद हैं- कल्पोपपन और कल्पातीव । कल्प का अर्थ है मर्यादा । जिन देवों में इन्द्र, सामानिक आदि की मर्यादा बंधी हुई है, उन्हें कल्पोपपन्न कहते हैं। जिन देवों में छोटे बड़े का भाव नहीं है, सभी अहमिन्द्र हैं वे कल्पातीत कहलाते हैं। समुदान, सन्निवेश (गांव) या विमान जितनी फैली हुई पृथ्वी को कल्प कहते हैं, कल्प का अर्थ है आचार, जिन देवों में इन्द्र, सामानिक श्रादि की व्यवस्था रूप आचार है, उन्हें कल्पोपपन्न कहते हैं । इनके बारह भेद हैं
(१) सौधर्म देवलोक (२) ईशान देवलोक (३) सनत्कुमार देवलोक (४) माहेन्द्र देवलोक ( ५ ) ब्रह्म देवलोक (६) लान्तक देवलोक (७) महाशुक्र देवलोक (८) सहस्रार देवलोक ( 8 ) आणत देवलोक (१०) प्राणत देवलोक (११) आरण देवलोक (१२) अच्युत देवलोक । इन सौधर्मादि विमानों में वैमानिक देव रहते हैं ।
रत्नप्रभा के समतल भाग से १|| राजू की ऊँचाई पर सौधर्म और ईशान देवलोक हैं | २|| राजू पर सनत्कुमार और माहेन्द्र | ३| राज् पर ब्रह्म देवलोक । ३॥ राजू पर लान्तक | ३ ||| राजू पर महाशुक्र । ४ राजू पर सहस्रार | ४ || राजू पर श्राखत और प्राणत । ५ राजू पर चारण और अच्युत देवलोक हैं । ७ राजू को ऊँचाई पर लोक का अन्त है । ये धावास तारामण्डल या चन्द्रमण्ड यदि ज्योतिषी विमानों