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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
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स्पृष्ट या गृद्धस्पृष्ट मरण कहलाता है, अथवा पीठ श्रादि शरीर के अवयवों का मांस गीध आदि पक्षियों द्वारा खाया जाने पर होने वाला मरण गृध्रपृष्ट मरण कहलाता है। उपरोक्त दोनों व्याख्याएं क्रमशः तिर्यश्च और मनुष्य के मरण की अपेक्षा से हैं।
उपरोक्त बारह प्रकार के पाल मरणों में से किसी भी मरण से मरने वाले प्राणी का संसार बढ़ता है और वह बहुत काल तक संसार में परिभ्रमण करता है। (भगवती शतक २ उद्देशा १) ७६६-चन्द्र और सूर्यों की संख्या
चन्द्र और सूर्य कितने हैं, इस विषय में अन्य तीर्थियों की पारह मान्यताए हैं, वे नीचे लिखे अनुसार हैं
(१) सारे लोक में एक चन्द्र तथा एक ही सूर्य है। (२) तीन चन्द्र तथा तीन सूर्य। (३) आठ चन्द्र तथा पाठ सूर्य । (४) सात चन्द्र तथा सात सूर्य। (५) दस चन्द्र तथा दस सूर्य। (६) बारह चन्द्र तथा पारह सूर्य । (७) बयालीस चन्द्र तथा बयालीस पर्य। () पहचर चन्द्र तथा बहत्तर सूर्य । (8) बयालीस सौ चन्द्र क्या क्यालीस सौ सूर्य। (१०) बहचर सौ चन्द्र तथा बहत्तर सौ सूर्य । ' (११) पयालीस हजार चन्द्र तथा बयालीस हजार सूर्य । (१२) वहचर हजार चन्द्र तथा वहत्तर हजार सूर्य ।
जैन मान्यता के अनुसार एक लाख योजन लम्बे तथा एक लाख योजन चौड़े जम्बूद्वीप में दो चन्द्र तथा दो सूर्य प्रकाश करते हैं। इनके साथ १७६ ग्रह और ५६ नक्षत्र हैं। एक लाख तेतीस