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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २ (३) अन्नोसल्ल मरण (अन्तःशल्य मरण)-इसके द्रव्य और भाव दो भेद हैं । शरीर में वाण या तोमर (एक प्रकार का शत्र) आदि के घुस जाने से और उनके वापिस न निकलने से जो मरण होता है वह द्रव्य अन्तः शल्य मरण है। अविचारों की शुद्धि किये विना ही जो मरण होता है वह भाव अन्तः शल्य मरण है क्योंकि अतिचार आन्तरिक शन्य हैं। (४) तद्भव मरण-मनुष्य आदि ने शरीर को छोड़ कर फिर मनुष्य आदि के ही शरीर को प्राप्त करना तद्भव मरण है। यह मरण मनुष्य और तिर्यञ्चों में ही हो सकता है किन्तु देव और नारकी जोवों में नहीं क्योंकि मनुष्य पर कर मनुष्य और तिर्यश्च मर कर तिर्यच हो सकता है किन्तु देव मर कर फिर देव र नैयिक मर कर फिर नैरयिक नहीं हो सका। (५) गिरिपडण गिरिपतन) मरण-पर्वत आदि से गिर कर मरना गिरिपडण मरण है। (६) तरुपडण (तरुपतन)- वृत आदि से गिर कर मरना । (७) जलप्पवेस (जलप्रवेश)-जल में डूब कर मरना। (८) जलगप्पवेस (ज्वलनप्रवेश)- अग्नि में गिर कर मरना। (8) विसमक्खण (विष भक्षण) मरण-जहर आदि प्राणघातक पदार्थ खाकर मरना विष भक्षण मरण कहलाता है। (१०) सत्थोवाडणे (शस्त्रावपाटन)-दुरी,तलवार आदि शस्त्र द्वारा होने वाना मरण शस्त्रावपाटन मरण है। (११) विहाणस (वैहानस) मरण-गले में फांसी लगाकर वृक्ष आदि की डाल पर लटकने से होने वाला मरण विहाणस मरण है। (१२) गिद्धप? (गृध्रस्पृष्ट)-हाथी, ऊँट या गदहे आदि के भव में गीध पक्षियों द्वारा यामास लोलुप भृगाल आदिजंगली जानवरों द्वारा शरीर के विदारण (चीरने) से होने वाला मरण गृध्र
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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