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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला स्थरिकल्प आदि में इकठ्ठ होकर रहना समवसरण संभोग है।
(११)सभिषधा-श्रासन आदि का देना । साम्भोगिक साधु यदिएकपासन पर बैठ कर शास्त्र चर्चा करें तो वह शुद्ध है। ढीले पासत्थे और साध्वी आदि के साथ एक आसन पर बैठना अशुद्ध है।
(१२) कथाप्रबन्ध-पाँच प्रकार की कथा के लिए एक जगह चैठ कर व्यवहार करना कथाप्रबन्ध संभोग है। कथा के पाँच भेद निम्न लिखित है-(१)वाद-पाँच अथवा तीन अवयव वाले अनुमान वाक्य द्वारा छल और जाति आदि को छोड़ कर किसी मत का समर्थन करना वाद है। वाद कथा में सत्य बात को जानने का प्रयत्न ही मुख्य रहता है, दूसरे को हराने का ध्येय नहीं रहता । (२ जल्पकथा- दूसरे को हराने के लिए जिस कथा में छल, जाति
और निग्रहस्थान का प्रयोग हो उसे जल्प कहते हैं। ३) वितण्डाकथा स्वयं किसी पक्ष का अवलम्बन किए बिना जिस कथा में वादी या प्रतिवादी केवल दूसरे का दोष बता कर खएडन करता है उसे वितण्डा कथा कहते हैं । (४) प्रकीर्ण कथा- साधारण बातों की चर्चा करना प्रकीर्ण कथा है। यह उत्सर्ग कथा अथवा द्रव्यास्तिकनय कथा भी कही जाती है . ५. निश्चय कथा-अपवाद बातों की चर्चा करना निश्चय कथा है। इसे अपवाद कथा अथवा पर्यायास्तिक नय कथा भी कहा जाता है। इन में पहली तीन कथाएं साध्वियों को छोड़ कर चाकी सब के साथ कर सकता है । साध्वियों के साथ करने पर प्रायश्चित्त का भागी होता है। तीसरी बार तक आलोचना से शुद्ध हो सकता है, चौथी बार करने पर वि भोगी कर दिया जाता है।
इस विषय में विस्तारपूर्वक निशीथचूर्णी और भाष्य के पाँचवें उद्दयो से जानना चाहिए। (व्यवहार सूत्र उद्देशा ५)
(समवायाग १२ वा समवाय) (निशीथ चूर्णी उद्देशा५)