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________________ २८९ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग मुनि से डरता होतो मुनि को चार हाथ तक पीछे हट जाना चाहिये अर्थात् उन प्राणियों को किसी प्रकार भय उत्पन्न न हो इस प्रकार प्रवृत्ति करनी चाहिए। पडिमाधारी मुनि शीतकाल में किसी ठण्डे स्थान पर बैठा हो तोशीत निवारण के लिए उसे धूप युक्त गरम स्थानों पर न जाना चाहिए । इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु में गरम स्थान से उठ कर ठण्डे स्थान में न जाना चाहिए किन्तु जिस समय जिस स्थान पर बैठा हो उसी स्थान पर अपनी मर्यादा पूर्वक बैठे रहना चाहिये। उपरोक्त विधि से भिक्षु की पहली पडिमा यथासूत्र, यथाफम्प, यथामार्ग, यथातच, काया द्वारा स्पर्श कर, पालन कर, अविचारों से शुद्ध कर, समास टर, कीर्तन कर, भाराधन कर भगवान् की आज्ञानुसार पालन की जाती है। इसका समय एक महीना है। (२-७) दूसरी पडिमा का समय एक मास है। इसमें उन सब नियमों का पालन किया जाता है जो पहली पडिमा में पताये गये हैं। पहली पडिमा में एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी.की ग्रहण की जाती है। दूसरी पडिमा में दो दचि अन की और दो दति पानी की ग्रहण की जाती है । इसी प्रकार तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं पडिमाओं में क्रमशः तीन चार पाँच छ। और सात दत्ति अन्न की और उतनी ही पानी की ग्रहण की जाती है। प्रत्येक पडिमा का समय एक एक मास है, केवल दत्तियों की वृद्धि के कारण ही ये क्रमशः द्विमासिकी, त्रिमासिकी, चतुर्मासिकी, पञ्चमासिकी, पाएमासिकी और सप्तमासिकी पडिमाएं कहलाती है। इन सब पडिमाओं में पहली पडिमा में बताये गये सब नियमों का पालन किया जाता है। (८)आठवीं पडिमा का समय सात दिन राव है। इसमें अपानक उपवास किया जाता है अर्थात् एकान्तर चौविहार उपवास करना
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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