________________
२६०
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
चाहिए। ग्राम, नगर या राजधानी के बाहर जाकर उत्तानासन ( आकाश की ओर मुँह करके लेटना), पाश्र्वासन ( एक पसवाडे से लेटना) अथवा निषद्यासन (पैरों को बराबर रख कर बैठना ) से ध्यान लगा कर समय व्यतीत करना चाहिए। ध्यान करते समय देवता, मनुष्य अथवा तिर्यश्व सम्बन्धी कोई उपसर्ग उत्पन्न हो तो ध्यान से विचलित नहीं होना चाहिए किन्तु अपने स्थान पर निश्चल रूप से बैठे रह कर ध्यान में दृढ़ बने रहना चाहिए । यदि मल मूत्र आदि की शंका उत्पन्न हो जाय तो रोकना न चाहिए किन्तु पहले से देखे हुए स्थान पर जाकर उनकी निवृत्ति कर लेनी चाहिये । आहार पानी की दत्तियों के अतिरिक्त इस पडिमा में पूर्वोक्त सब नियमों का पालन करना चाहिए । इस पडिमा का नाम प्रथम सप्त रात्रिदिवस की भिक्खु पडिमा है ।
(६) नवीं का नाम द्वितीय सप्त रात्रिदिवस पडिमा है । इसका समय सात दिन रात है। इसमें चौविहार बेले बेले पारणा किया जाता है। ग्राम अथवा नगर आदि के बाहर जाकर दण्डासन, लगुडासन और उत्कटुकासन से ध्यान किया जाता है ।
(१०) दसवीं का नाम तृतीय सप्त रात्रिदिवस पडिमा है । इसकी अवधि सात दिन रात है । इसमें चौविहार तेले तेले पारणा किया जाता है और ग्राम अथवा नगर के बाहर जाकर गोदोहनासन, धीरासन और श्राग्रकुब्जासन मे ध्यान किया जाता है। आठवीं, नवीं और दसवीं पडिमाओं में आहार पानी की दत्तियों के अतिरिक्त शेष सभी पूर्वोक्त नियमों का पालन किया जाता है। इन तीनों पडिमाओं का समय इक्कीस दिन रात है ।
(११) ग्यारहवीं पडिमा का नाम श्रहोरात्रिकी है। इसका समय एक दिन रात है अर्थात् यह पडिमा आठ पहर की होती है। चौविहार बेला करके इस पडिमा का श्राराधन किया जाता है। नगर आदि