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श्री सेठिया जैन प्रम्थमाला
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भिक्षा दे या प्रसवा (जिसका गर्भ पूरे मास प्राप्त कर चुका हो) स्त्री अपने श्रासन से उठ कर भिक्षा दे तो वह भोजन मुनि को नहीं कल्पता । जिसके दोनों पैर देहली के भीतर हों या बाहर हों उससे भी मिक्षा न लेनी चाहिए किन्तु जिसका एक पैर देहली के भीतर हो और एक बाहर हो उसी से भिक्षा लेना कल्पता है ।
पडिमाधारी मुनि के लिए गोचरी के लिए तीन समय बतलाये गए हैं। दिन का श्रादि भाग, मध्यभाग और चरमभाग | यदि - कोई साधु दिन के प्रथम भाग में गोचरी जाय तो मध्यभाग और अन्तिमभाग में न जाय । इसी तरह यदि मध्यभाग में जाय तो आदि भाग और अन्तिमभाग में न जाय और अन्तिमभाग में गोचरी जाय तो प्रथम भाग और मध्यभाग में न जाय । श्रर्थात् उसे दिन के किसी एक भाग में गोचरी जाना चाहिए, शेष दो भागों में नहीं । . पडिमाधारी साधु को छः प्रकार की गोचरी करनी चाहिए । यथा- पेठा, श्रद्धपेटा, गोमूत्रिका, पतङ्गवीथिका, शंखावर्ती और गतप्रत्यागता । छः प्रकार की गोचरी का विस्तृत स्वरूप जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग दूसरे के छठे बोल संग्रह नं ४४६ में दिया गया है।
जहाँ उसे कोई जानता हो वहाँ एक रात रह सकता है और जहाँ उसे कोई नहीं जानता हो वहाँ एक या दो रात रह सकता है । किन्तु इस से अधिक नहीं | इससे अधिक जो साधु जितने दिन रहे उसे उतने ही दिनों के छेद या तप का प्रायश्चित आता है।
उसे चार प्रकार की भाषा बोलनी चाहिये
(१) याचनी - आहार आदि के लिये याचना करने की । (२) पृच्छनी - मार्ग आदि पूछने के लिए। (३) अनुज्ञापनी - स्थान आदि के लिए श्राज्ञा लेने की । (४) पुडु वागरणी - प्रश्नों का उत्तर देने के लिये ।