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श्री सेठिया जैन मन्थमाला
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भी निश्चय अदत्तादान के सेवी हैं क्योंकि वे आत्ममित्र पुण्यकर्मों को ग्रहण करते हैं । मोक्षाभिलापी श्रात्मा की क्रियाएं केवल निर्जरा के उद्देश्य से होनी चाहिए। इस प्रकार निश्चय श्रदत्तादान से निवृत्त होकर निष्काम हो धर्म का पालन करना निश्चय श्रदचादान विरमण व्रत कहलाता हैं ।
(४) मैथुन विरमण व्रत - पुरुष के लिए परखी का त्याग करना और स्त्री के लिए परपुरुष का त्याग करना व्यवहार मैथुन विरमण व्रत है । साधु सर्वथा स्त्री का त्याग करते हैं और गृहस्थ विवाहिता स्त्री के अतिरिक्त शेष सभी स्त्रियों का त्याग करते हैं ।
विषय की अभिलाषा न रखना, ममता, तृष्णा का त्याग करना, परभाव वर्णादि एवं पर द्रव्य स्वामित्वादि का त्याग करना, पुद्गल स्कन्धों को अनन्त जीवों की झूठण समझ कर उन्हें अभोग्य समझना एवं ज्ञानादि श्रात्मगुणों में रमण करना निश्चय मैथुन विश्मण व्रत है । जिसने वाह्य विषयों का त्याग कर दिया है पर जिसकी अन्तरंग विपयाभिलाषा छूटी नहीं है उसे मैथुनजन्य कर्मों का बन्ध होता है ।
(५) परिग्रह परिमाण व्रत- धन, धान्य, दास, दासी, चतुष्पद घर, जमीन, वस्त्र, आभरण आदि परिग्रह हैं । साधु सवथा परिग्रह का त्याग करते हैं और श्रावक इच्छानुसार मर्यादा रख कर शेष परिग्रह का त्याग करते हैं । यह व्यवहार परिग्रह परिमाण व्रत है । राग द्वेष अज्ञान रूप भावकर्म एवं ज्ञानावरणीयादि श्राठ द्रव्यकर्मों को आत्मभाव से भिन्न समझ कर छोड़ना और बाह्य वस्तुओं मैं मूर्च्छा ममता का त्याग करना निश्चय परिग्रह परिमाण व्रत है ।
(६) दिशा परिमाण व्रत - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, अघः (नीची) और ऊर्ध्व (ऊँची) इन छः दिशा के क्षेत्रों की मर्यादा करना और आगे के क्षेत्रों में जाना आना आदि क्रियाओं का त्याग करना व्यवहार दिशा परिमाण व्रत है। चार गांत को कर्म की परिणति