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जनप्रन्थमाला
बारह मेद हैं
कुआसण चलासणं चलविट्ठी, सावजकिरियालंषणाकुंचणपसारणं। पालस्स मोडण मल विमासणं, निदा वैयावच त्ति बारस काय दोसा।
(१) कुमासन-कुआसन से बैठना, जैसे पाँव पर पाँव चढ़ा कर बैठना श्रादि 'कुशासन' दोष है।
(२) चलासन-स्थिर आसन से न बैठ कर बार वार श्रासन बदलना, 'चलासन' दोष है।
(३) चलदृष्टि-दृष्टि को स्थिर न रखना, विना प्रयोजन पार पार इधर उधर देखना 'चलदृष्टि' दोप है।
(४) सावधक्रिया-शरीर से सावध क्रिया करना, इशारा करना या घर की रखवाली करना 'सावध क्रिया' दोष है।
(५) आलम्बन-विना किसी कारण के दीवाल आदि का सहारा लेकर बैठना 'आलम्बन' दोष है।
(६)आश्चन प्रसारण-बिना प्रयोजन ही हाथ पाँव फैलाना, समेटना 'आकुञ्चन प्रसारण' दोष है।
(७) आलस्य-सामायिक में आलस्य से अंगों को मोड़ना 'पालस्य' दोष है।
(८) मोडण -सामायिक में बैठे हुए हाथ पैर की अङ्गुलियाँ चटकाना 'मोडण' दोष है। (8)मल दोष-सामायिक में शरीर का मैल उतारना'मल' दोष है।
(१०) विमासन-गाल पर हाथ लगा कर शोकस्त की तरह बैठना, अथवा विना पूजे शरीर खुजलाना या हलन चलन करना 'विमासन दोष है।
(११) निद्रा--सामायिक में निद्रा लेना 'निद्रा दोष है।