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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
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(३) जायणी ( यावनी ) - याचना करने के लिए कही जाने बाली भाषा याचनी है |
(४) पुच्छणी (पृच्छनी ) - अज्ञात तथा संदिग्ध पदार्थों को जानने के लिये प्रयुक्त भाषा पृच्छनी कहलाती है ।
(५) पण्णवणी (प्रज्ञापनी ) - विनीत शिष्य को उपदेश देने रूप भाषा प्रज्ञापनी है । यथा - प्राणियों की हिंसा से निवृत्त पुरुष भवान्तर में दीर्घायु और नीरोग शरीर वाले होते हैं।
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(६) पचक्खाणी ( प्रत्याख्यानी ) - निषेधात्मक भाषा | (७) इच्छा गुलोमा ( इच्छानुलोमा ) - दूसरे की इच्छा का अनुसरण करना । जैसे - किसी के द्वारा पूछा जाने पर उत्तर देना कि जो तुम करते हो वह मुझे भी अभीष्ट है।
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(८) अभिगहिया (अनभिगृहीता ) - प्रतिनियत ( निश्चित ) अर्थ का ज्ञान न होने पर उसके लिए पूछना ।
(६) श्रभिग्गहिया ( अभिगृहीता ) - प्रतिनियत अर्थ का बोध कराने वाली भाषा अभिगृहीता है।
- (१०) संशयकरणी -- अनेक अर्थों के वाचक शब्दों का जहाँ पर प्रयोग किया गया हो और जिसे सुन कर श्रोता संशय में पड़ जाय वह भाषा संशयकरणी है। जैसे सैन्धव शब्द को सुन कर श्रोता संशय में पड़ जाता है कि नमक लाया जाय या घोड़ा । (११) बोगडा ( व्याकृता ) - स्पष्ट अर्थ वाली भाषा व्याकृता कहलाती हैं ।
(१२) अन्चोगडा (अव्याकृता ) -- अति गम्भीर अर्थ वाली अथवा अस्पष्ट उच्चारण वाली भाषा अव्याकृता कहलाती है ।
(पनवा ११ वी भाषापद )
७८६ - काया के बारह दोष
सामायिक में निषिद्ध आसन से बैठना काया का दोष है । इसके