________________
-
२७२
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला . मात्र है। इस लिए उसमें ये बारह भेद कैसे घटित हो सकेंगे ?
समाधान-अर्थावग्रह के दो भेद माने गए हैं-व्यावहारिक और नैश्चयिक । उपरोक्त मेद व्यावहारिक अर्थावग्रह के समझने चाहिये। नैश्चयिक अर्थावग्रह के नहीं, क्योंकि इसमें जाति, गुण, क्रिया आदि से शून्य मात्र सामान्य प्रतिभास होता है, इस लिए इसमें बहु, अल्प आदि विशेषताओं का ग्रहण नहीं हो सकता।
व्यावहारिक अर्थावग्रह और नैश्चयिक अर्थावग्रह में सिर्फ यही फरक है कि सामान्य मात्र का ग्रहण करने वाला नैश्चयिक अर्थावग्रह है और विषयों की विविधता सहित सामान्य और विशेष दोनों को ग्रहण करने वाला व्यावहारिक अर्थावग्रह है।
अवग्रह की तरह ईहा, अवाय और धारणा, प्रत्येक के बारह बारह भेद होते हैं। (तत्वार्थाधिगम माष्य अध्ययन १ सूत्र १६)
(ठाणांग, स्त्र ५१०) (विशेषावश्यक भाष्य गाथा १७८ ) ७८८-असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा के
बारह भेद सत्या, असत्या, सत्यामृषा और असत्यापृषा इस प्रकार भाषा के चार भेद हैं । पहले की तीन भाषाओं के लक्षण से रहित होने के कारण चौथी असत्यामृषा का इनमें अन्तर्भाव नहीं हो सकता। केवल लौकिक व्यवहार की प्रवृत्ति का कारण होने से यह व्यवहार भाषा या असत्यामृषा भाषा कहलाती है। इसके बारह भेद हैं
(१) भामंतणी (पाणी )-आमन्त्रणा करना । जैसे-हे भगवन् ! हे देवदत्त । इत्यादि।
(२) प्राणमणी (आज्ञापनी)-दूसरे को किसी कार्य में प्रेरित करने वाली भाषा प्राणमयी कहलाती है, यथा- जामो, लामो, अमुक कार्य करो, इत्यादि।