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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २६६ सामान्य ज्ञान होता है उसे चतुदर्शन अनाकारोपयोग कहते हैं। (१०) अचतुदर्शन अनाकारोपयोग-चतु इन्द्रिय को छोड़ कर शेष चारों इन्द्रियों और मन के द्वारा होने वाला पदार्थों का सामान्य ज्ञान अचनुदर्शन अनाकारोपयोग है।
(११) अवधिदर्शन अनाकारोपयोग-मर्यादित क्षेत्र में रूपी द्रव्यों का सामान्य ज्ञान अवधिदर्शन अनाकारोपयोग है।
(१२) केवलदर्शन अनाकारोपयोग-दूमरे ज्ञान की अपेक्षा विना सम्पूर्ण संसार के पदार्थों का सामान्य ज्ञान रूप दर्शन केवल दर्शन अनाकारोपयोग कहलाता है। (पन्नवणा २६ वा उपयोग पद) ७८७-अवग्रह के बारह भेद
नाम, जाति आदि की विशेष कल्पना से रहित वस्तु का सामान्य ज्ञान अवग्रह कहलाता है। जैसे गाढ़ अन्धकार में किसी वस्तु का स्पर्श होने पर 'किमिदम, यह क्या है इस प्रकार का ज्ञान होता है । यह ज्ञान अव्यक्त (अस्पष्ट) है। इसमें किसी भी पदार्थ का विशेष ज्ञान नहीं होता । इसके बारह मेद हैं।
(१) पहुग्राही-बहु अर्थात् अनेक पदार्थों का सामान्य ज्ञान बहुग्राही अवग्रह है।
(२) अल्पग्राही-एक पदार्थ का ज्ञान अल्पग्राही अवग्रह है। (३) बहुविधाही-किसी पदार्थ के श्राकार, प्रकार, रूप रंग आदि विविधता का ज्ञान बहुविधग्राही अवग्रह है।
(४) एकविधग्राही--एक ही प्रकार के पदार्थ का ज्ञान एकविधग्राही अवग्रह है।
बहु और अल्प का अर्थ व्यक्तियों की संख्या से है और बहुविध तथा एकविध का अर्थ प्रकार (किस्म) अथवा जाति की संख्या से है। यही इन दोनों में फरक है।